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पीयूष मिश्रा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के उन चुनिंदा लोगों में से हैं, जो सिर्फ़ रटे-रटाए संवाद नहीं बोलते, बल्कि ख़ुद समाज से संवाद करने लायक शब्द गढ़ने में भी समर्थ रहे हैं। ये और बात है कि फिल्मों की बदौलत पीयूष मिश्रा का चेहरा अब ज़्यादा लोग पहचानने लगे हैं, लेकिन बतौर अभिनेता पीयूष मिश्रा लगभग तीस सालों तक दिल्ली रंगमंच पर जमकर छाए रहे हैं। ये एक ऐसे अभिनेता रहे हैं, जिनकी नाटकों की टिकटें ख़रीदने के लिए लंबी-लंबी क़तारें लग जाया करती थीं। फिल्मों में भी इन्होंने अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवाने में कहीं कसर नहीं छोड़ी है। हाल ही में दिल्ली के राजकमल प्रकाशन से इनकी एक किताब आई है, ‘तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा’। इस कहानी में वे ख़ुद अपनी ही कहानी कह रहे हैं। भले ही इसमें उनका नाम बदला हुआ है, लेकिन कहने का ढंग ऐसा है कि उनकी ज़िंदगी, उससे जुड़ी जगहें और तमाम किरदारों को कोई भी पाठक आसानी से पहचान सकता है। हाल-फ़िलहाल आई किताबों में से ये किताब पाठकों में अपनी कसे हुए लेखन के चलते ख़ासी सराही जा रही है। इस किताब के ज़रिये से ही हमने ‘द वायर’ पर ‘हिंदी की बिंदी’ के लिए पीयूष मिश्रा से की एक ख़ास मुलाक़ात और उन्हीं से जानीं उनकी ज़िंदगी से जुड़ी कई बातें।
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Негізгі бет किताब के बहाने ख़ुद अपनी ‘औक़ात’ बताते पीयूष मिश्रा | Piyush Mishra | Tumhari Auqaat Kya Hai | Book
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