Kya Hai Anand Aur Sacche Sukh Ya Anand Ki Prapti Kaise Ho || Dharmavandna | #anandkyahai #geeta
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नमस्कार,
कभी आपने ये सोचा है कि इस दुनिया में सबसे अधिक आनंद मय व्यक्ति कौन है ऐसा कौन व्यक्ति है जो हमेशा आनंद से पूर्ण हो और मेैं यहां पर सबसे आनंद मय व्यक्ति की बात कर रहा हूं नाकी इस दुनिया में सबसे सुखी व्यक्ति की
सुखी और आनंद मई व्यक्ति में फर्क होता है जिसका वर्णन मैं आगे चल कर इस वीडियो में बताऊंगा और जरा आप ये बताइए कि आप इतने सालों से जो जीवन जीते आ रहे हैं वो एक आनंद मई जीवन है या फिर वो एक ऐसा जीवन है जिसमें आपको दिन प्रतिदिन दुख तनव पीड़ा सहन करनी पड़ रही है और क्या ऐसा ही होता रहेगा जब तक आपका शरीर पंच तत्वों में विलीन नहीं हो जाता
तो अब आप ये सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा व्यक्ति है जो सबसे आनंदमय है तो इसे जानने के लिए आप कभी अपने बहुमूल्य समय का छोटा सा हिस्सा निकालकर, किसी नवजात शिशु के निकट बैठिये और उसे ध्यान से देखिएगा। उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं होता जिस पर वह गर्व कर सके। यहां तक की कई बार नवजात शिशु के शरीर में कपडे का एक टुकड़ा भी नहीं होता, लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर आपको असीम प्रसन्नता दिखाई देगी। यहां तक की जब वह रोता है, उस समय भी उसके चहरे पर तनाव की एक लकीर भी नहीं दिखाई देती। वह केवल इसलिए रोता है, क्योंकी उसे रोना आता है।
कई बार उसके रोने अथवा मुस्कुराने का कोई कारण नहीं होता फिर भी वह रोता एवं मुस्कुराता है।
पहली नज़र में हम बच्चों को मुस्कुराते देख यह सोच लेते हैं की वह खुश है, लेकिन वास्तव में अबोध बच्चों की प्रसन्नता के लिए हमें "ख़ुशी" के बजाय "आनंद" शब्द का प्रयोग करना चाहिए। यदि हम ख़ुशी एवं आनंद में स्पष्ट अंतर देखें तो "ख़ुशी वह है जो आपको अपने शरीर के बाहरी वस्तुओं को हासिल करके प्राप्त होती है, जबकि आनंदित होने के लिए आपको किसी भी अन्य वस्तु अथवा व्यक्ति की आवश्यकता नहीं होती। हर कोई अपने जीवन का सुख लेना चाहता है। कुछ लोग परिवार में रहकर सुख लेते हैं, कुछ धन अर्जित करके कुछ शराब पीने और नशीली दवाओं का सेवन करके सुख लेते हैं, और अन्य - खेलने, गाने या नृत्य करने में। परन्तु यह सब क्षणिक है; सब अस्थायी है; समय के साथ ये सुख भी चला जाता है
ख़ुशी आप पर निर्भर करती है नाकि उस चीज़ पर जो आपको ख़ुशी दे रही है यानी ख़ुशी व्यक्ति पर निर्भर करती है, वस्तु पर नहीं. वही व्यक्ति, स्थान या वस्तु जो एक समय में खुशी लाती है, दूसरे ही समय दुख ला सकती है।
अब बात करते हैं आनंद क्या है
आनंद शब्द मे अ' का अर्थ है सभी ओर से और 'नंद' का अर्थ है प्रसन्नता या आनंद। इस प्रकार 'आनंद' का शाब्दिक अर्थ है सभी ओर से आनंद।
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वास्तव में बढ़ती उम्र के साथ मनुष्य में सबसे बड़ी गलतफहमी यह विकसित होने लगती है की, "कोई वस्तु जितनी महँगी होगी, ख़ुशी उतनी अधिक होगी"। लेकिन जब हम अबोध बच्चे थे तो संभवतः केवल किसी रंगीन तितली को देखकर भी आनंदित हो जाते थे। उस समय हमारे लिए उस तितली का पीछा करने से बड़ा कोई आनंद ही नहीं होता था। जब हम बड़े होते हैं तो हम अधिक क्षमतावान होने लगते हैं, किंतु इसके बावजूद, जीवन अधिक आनंदित होने के बजाय नीरस होने लगता है, जबकि होना इसके विपरीत चाहिए।
बढ़ती उम्र के साथ जीवन में नीरसता अथवा उदासीनता आने का सबसे बड़ा कारण यही है की, हम ख़ुशी को किसी वस्तु की कीमत अथवा व्यक्ति से हमारे संबंध के आधार पर तय करने लगते हैं। बड़े होकर हम अपना अतीत ढोने लगे। जब आप अपने अतीत का बोझ लेकर चलते हैं, तो आपका चेहरा लटक जाता है, खुशी गायब हो जाती है, उत्साह खत्म हो जाता है। मान लीजिए अगर आप पर किसी तरह का कोई बोझ नहीं है तो आप बिल्कुल एक छोटे बच्चे की भांति आनंद में होते हैं। अतः इसे किसी वस्तु अथवा व्यक्ति में तलाशने के बजाय आनंद अथवा सच्ची खुशी की खोज अपने भीतर करें।
क्या भौतिक संपत्ति जैसे कार, बंगला, प्रसिद्धि, शक्ति, पैसा आदि ही सच्ची ख़ुशी है। यदि धन ही सब कुछ होता, तो ऐसा क्यों है कि दुनिया के सबसे अमीर देशों में आत्महत्या, हत्या की दर सबसे अधिक है! और तनाव संबंधी विकारों से इतना अधिक पीड़ित हैं? योग' शब्द का अर्थ है स्वयं को ईश्वर से जोड़ना भगवद गीता में भगवान कृष्ण द्वारा योग प्रक्रिया से गुजरने वाले व्यक्ति की विशेषताओं का वर्णन किया गया है ऐसा व्यक्ति श्रेष्ठता में स्थित होता है और आत्म-नियंत्रित होता है। वह सब कुछ चाहे वह कंकड़ हो, पत्थर हो या सोना - एक ही रूप में देखता है। असीमित संपत्ति होने के बावजूद यदि हम सच्चे आनंद से वंचित है, तो संभवतः हम उस नग्न नवजात शिशु से भी अधिक निर्धन हैं। आनंद को बारीकी से समझने के लिए इस छोटी सी कथा को सुनिए
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