लक्ष्मण ने काटी शूर्पणखा की नाक
शूर्पणखा का खर-दूषण के पास जाना। खर दूषण का वध।।मारीच का स्वर्ण मृग रूप धारण करना।
शूर्पणखा द्वारा रावण को सीता हरण के लिये उकसाना।मारीच का स्वर्ण मृग रूप धारण करना।
राम को देख कर जब शूर्पणखा उनसे विवाह करने की बात करती है तो श्री राम उसे मना कर देते हैं और कहते हैं की मैंने एक पत्नी के साथ जीवन बिताने का प्रण लिया है इसलिए मैं तुमसे विवाह नहीं कर सकता। शूर्पणखा यह सुनकर माता सीता को मारने के लिए आगे बड़ती हैं तो लक्ष्मण उसे रोक देते हैं और श्री राम उसकी इस उदंडता पर लक्ष्मण को शूर्पणखा की नाक काटने को कहते हैं। लक्ष्मण शूर्पणखा की नाक काट देते हैं।
राम लक्ष्मण से तिरस्कृत शूर्पणखा अपने भाईयों खर और दूषण के पास जाती है। उन्हें झूठी कथा सुनाकर भड़काती है। खर दूषण राम लक्ष्मण को मारने और सीता को उठा लाने के लिये चौदह दानवों को भेजते हैं। राम लक्ष्मण पहले से सावधान हैं। राम केवल एक बाण से सभी दानवों का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। यह समाचार सुनकर खर दूषण पूरी सेना के साथ आक्रमण करते हैं। राम लक्ष्मण को सीता की सुरक्षा हेतु कुटिया में रहने को बोलकर अकेले युद्ध करने जाते हैं। युद्धक्षेत्र में राम का सामना खर दूषण से होता है। वे युद्ध को तत्पर होते हैं तभी उनके मानस में महर्षि अगस्त्य आते हैं और उनसे कहते हैं कि ये दानव कपट युद्ध करने वाले हैं। इनपर विजय पाने के लिये वे ऋषि विश्वामित्र द्वारा प्रदत्त मोहिनी अस्त्र का प्रयोग करें। राम मोहिनी अस्त्र चलाते हैं। अस्त्र के प्रभाव से दानवों की सेना को अपने बीच राम ही राम दिखने लगते हैं और वे राम के भ्रम में अपने ही साथियों से लड़ने लगते हैं। देखते ही देखते पूरी दानव सेना आपस में लड़ मरती है। दूषण मोहिनी अस्त्र प्रभाव को खत्म करने के लिये राम पर आक्रमण करता है लेकिन मारा जाता है। भाई को मरता देखकर खर राम पर मायावी अस्त्र शस्त्र चलाता है। उसके हर वार को विफल कर राम उसे भी मार देते हैं। यह देखकर भयभीत शूर्पणखा वहाँ से भाग निकलती है। उधर लंका में रावण अभिनन्दन गीत के बीच अपनी राजसभा में आता है और सिंहासन पर बैठता है। शनिदेव बन्दी बन उसके पैरों के नीचे दबे दिखायी पड़ते हैं। नर्तकियाँ उसका गुणगान कर नृत्य प्रस्तुत करती हैं। रावण ने तपस्या में ब्रह्मा को शीश काट कर चढ़ाने से अमरत्व का वरदान प्राप्त किया है। देवासुर संग्राम में भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र रावण के गले तक पहुचता है लेकिन उसकी वक्र दृष्टि से घबड़ाकर लौट जाता है। एक दिन रावण भगवान शिव को कैलाश पर्वत सहित उठा लेता है। तब शिव रावण की इस दम्भपूर्ण भक्ति पर मुस्कुराते हुए अपने एक पैर से कैलाश पर्वत पर थोड़ा दबाव देते हैं। रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब जाता है। रावण तत्काल शिव ताण्डव स्त्रोत की रचना कर शिव स्तुति करता है। भोले बाबा प्रसन्न होते हैं और रावण के हाथ को मुक्त कर उसे अपनी अविनाशी चन्द्रहास तलवार प्रदान करते हैं। राजसभा में रावण का गुणगान समाप्त होता है। तभी शूर्पणखा दुहाई देते हुए भाई रावण की सभा में पहुँचती है। रावण उसके आने का प्रयोजन पूछता है।
अपनी कटी नाक लेकर शूर्पणखा रावण की राजसभा में जाकर दुहाई देती है। उसकी दशा देखकर रावण क्रोधित होता है। वो शूर्पणखा से राम और लक्ष्मण के बारे में सुनता है लेकिन जब रावण को खर दूषण के मारे जाने का पता चलता है तो उसे इसके पीछे देवताओं के षड्यन्त्र का सन्देह होता है। शूर्पणखा रावण को भड़काते के लिये झूठ कहती है कि राम और लक्ष्मण के साथ एक अनुपम सुन्दर स्त्री सीता है और वो भाई रावण के लिये उस स्त्री को उठाने गयी थी तब उन दोनों भाईयों ने उसकी यह दशा की और रावण को चुनौती दी कि यदि उसमें साहस है तो वो स्वयं आकर सीता को ले जाए। सेनापति अकम्पन लंकापति को राम और लक्ष्मण के राजकुल और उनकी वीरता के बारे में बताता है। विभीषण भी राम द्वारा अपने राज्य की रक्षा हेतु असुरों के वध को नीतिसंगत बताते हैं। रावण को विभीषण की बातें अच्छी नहीं लगती। वह राम पर आक्रमण करने को उद्धत होता है। सेनापति अकम्पन रावण को परामर्श देता है कि पहले छलबल से सीता का हरण कर लिया जाये। इससे राम का मनोबल टूट जायेगा और तब आसानी से राम लक्ष्मण को मारा जा सकता है। विभीषण एक बार पुनः परस्त्रीहरण को धर्म विरूद्ध बताते हैं लेकिन रावण कहता है कि धर्म अधर्म का विचार शक्तिहीन करते हैं। महल में रानी मन्दोदरी भी रावण को समझाती है कि राजा की गलती का परिणाम समस्त प्रजा को भोगना पड़ता है। लेकिन शूर्पणखा फिर से सीता की सुन्दरता का बखान कर रावण का मन उनपर आसक्त कर देती है। रावण विमान से मामा मारीच के पास जाता है। मारीच राम के बाण से घायल होने के बाद से सन्यासी बन चुका होता है। रावण उससे मायावी विद्याओं की सहायता माँगता है। मारीच उसे राम की शक्ति के बारे में बताता है। तब रावण चेतावनी देता है कि मारीच उसकी प्रार्थना को राजाज्ञा मानकर पूरी करे अथवा परिणाम भोगने के लिये तैयार हो जाय। मारीच मान जाता है। रावण मारीच को स्वर्ण मृग का रूप धारण कर राम व लक्ष्मण को अपने पीछे भगाने की योजना देता है। मारीच एक बार फिर रावण को समझाता है कि राम से वैर मोल लेकर वो अपने कुल का नाश कर लेगा। अंहकार में डूबा रावण मारीच को दो विकल्प देता है। मारीच अभी इसी क्षण उसके हाथ मरना स्वीकार करे अथवा उसकी आज्ञा का पालन करे। मारीच समझ जाता है कि आज उसकी मौत निश्चित है। वो रावण की बजाय प्रभु राम के हाथों मरना पसन्द करता है और रावण की आज्ञानुसार स्वर्ण मृग का रूप रखकर पर्णकुटी के पास भ्रमण करने लगता है। सीता उसे देखकर मोहित होती हैं और राम लक्ष्मण को बुला लाती हैं। सीता राम से मृग को पकड़ लाने के लिये कहती हैं। लक्ष्मण मृग के अलौकिक रूप से सशंकित होते हैं लेकिन राम कहते हैं कि यदि ये कोई राक्षसी माया है तो उसका अन्त होना भी आवश्यक है। राम लक्ष्मण को सीता की सुरक्षा हेतु कुटिया में रहने को कहते हैं और मृग के पीछे जाते हैं।
Негізгі бет लक्ष्मण ने काटी शूर्पणखा की नाक |राम ने किया खर दूषण का वध।शूर्पणखा रावण को सीता हरण के लिये उकसाना
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