मेंढक मंदिर नाम सुनकर चौंकिए मत। यहाँ किसी मेंढक की पूजा नहीं होती जैसा कि आपको कई और लोगों ने बताया होगा। वस्तुतः मंदिर के आधार में एक विशालकाय मेंढक की जो संरचना आपको दिख रही है उसके कारण यह मंदिर इस नाम से लोक प्रसिद्ध हुआ है और वास्तव में यह नर्मदेश्वर भगवान भोलेनाथ का मंदिर है जो एक श्री यंत्र पर बना है। इसे तांत्रिक पूजाओं के लिए तंत्र विधि से स्थापित किया गया था इसलिए इसे तांत्रिक मंदिर भी कहा जाता है।
नमस्कार मित्रों मैं हूँ आपका मित्र चन्द्र शेखर और आज हम हैं लखीमपुर खीरी जिले के ओएल गाँव में जहां आज से लगभग सवा तीन सौ साल पहले सन सत्रह सौ पचास ईस्वी में यहाँ के राजा बख्स सिंह के द्वारा यह तांत्रिक मंदिर बनवाया गया था किसी तांत्रिक, ज्योतिषी अथवा पुरोहित की सलाह पर ताकि इस क्षेत्र को लगातार पड़ने वाले सूखे और अकाल से बचाया जा सके।
इस मंदिर के बाहर इसी की प्राचीर पर बना मंदिर है श्री राधा कृष्ण का जो इसी राज परिवार के द्वारा बनवाया गया है। भगवान विश्राम की अवस्था में है अतः पर्दे से झांक कर हम आपको भगवान के दर्शन नहीं करवाएँगे और आपको सीधे लिए चलते हैं भगवान भोलेनाथ के मेंढक मंदिर में जिसकी एक प्राचीन तस्वीर आप इस दीवार पर टंगी देख पा रहे हैं।
मंदिर के अंदर जाने के लिए प्राचीर में कोई दरवाजा नहीं है। पतली सी सिद्धियों के माध्यम से आपको प्राचीर को लांघ कर जब आप मंदिर प्रांगण में पहुँचते हैं तो आपको अंदाजा होता है मंदिर की भव्यता का। संभवतः इसे मुगल आक्रांताओं से बचाने ए लिए छुपा कर बनाया गया था। आज भी मंदिर के द्वार तक आने के बाद भी आपको समझ नहीं आता कि यह इतना भव्य मंदिर होगा। आज का ओएल एक छोटा सा कस्बा है और उस समय का ओएल एक बहुत छोटी सी रियासत थी और यहाँ के राजा बख्श सिंह को संभवतः इतिहास में कोई स्थान न प्राप्त हुआ हो किन्तु इस मंदिर ने उनकी किर्ति अमर कर दी है क्योंकि अपनी तरह का यह इकलौता मंदिर है इस भूमंडल पर।
इस मंदिर के चारों कोनों पर मीनार जैसी चार संरचनाएं संभवतः मंदिर की सुरक्षा के लिए सैनिकों की तैनाती का स्थान रहा हो किन्तु इसके विषय में कुछ भी ठीक ठीक कहा नहीं जा सकता। राजा साहब के परिवार की आठवीं पीढ़ी के लोग लखनऊ में कहीं रहते हैं आज भी और यहाँ जो पुजारी जी रखे गए हैं उनसे सिर्फ इतना ही ज्ञात हुआ कि इन संरचनाओं में भी दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र और मूर्तियाँ खचित हैं।
मंदिर का प्रांगण बड़ा है, साफ सुथरा है और सुंदर है। फुलवारियाँ लगाई गई हैं। गर्मी के मौसम मे भी हम आए थे तो पिछले वर्ष देखा था यहाँ फूल खिले हुए थे और घास हरी भरी थी। सुंदर सुंदर वृक्ष हैं और प्रांगण की हरयाली का बहुत सुंदर तरीके से प्रबंधन किया गया है।
जगह जगह लोगों के बैठने के लिए पत्थर की सुंदर कुर्सियाँ बनाई गई हैं। काफी अच्छी ख़ासी भीड़ यहाँ आती है। आस पास के गाँवों से लोग यहाँ दर्शन पूजन के लिए आते रहते हैं। कुछ लोग दूर दूर से भी आते हैं और मुझे बताया गया है कि बाबा ने बहुत से लोगों की मनोकामनाएँ पूरी की हैं। लोग यहाँ अपनी मन्नतें पूरी होने पर बाबा के दर्शन पूजन को भी आते हैं।
मेरे साथ मेरे कुछ मित्रगण भी आए हुये हैं और अत्यंत उत्साह में हैं बाबा के इस मंदिर को देख कर। ताला अभी नहीं खुला है तो दरवाजे पर ही धरना दिये बैठे हैं। जैसे ही ताला खुल जाता है तो हम अंदर चलेंगे।
मंदिर के चारों दिशाओं में प्रांगण की प्राचीर के साथ पीले रंग की जो भवन जैसी संरचनाएं दिख रही हैं वो संभवतः चारों दिशाओं में खुलने वाले मंदिर के सिंहद्वार थे जो अब बंद आर दिए गए हैं। अब सिर्फ एक छोटा सा द्वार है जिससे सीधी चढ़ कर हम अंदर आए हैं। इनमें से जो द्वार मुख्य सड़क की तरफ है उसे बंद कर के अब उसमें राधा कृष्ण के विग्रह स्थापित कर दिये गए हैं और अब उन्हें राधा कृष्ण मंदिर कहा जाता है जहां हम शुरुवात में ही गए थे।
मंदिर की दीवारों पर चारों तरफ जो कलकारियाँ दिखती हैं वो अत्यंत आकर्षक तथा मनमोहक हैं और उस जमाने में जिसने भी इसे बनाया हो वह महान कलाकार रहा होगा। अंदर बाहर दोनों तरफ अच्छी ख़ासी कलकृतियाँ दिखती हैं और मन में कौतूहल उतपन्न करती हैं। मंदिर के चारों कोनों पर जो चार बुर्ज बने हैं उन्हें आम जनता के लिए बंद रखा गया है। सामने दिख रहा यह छोटा सा दरवाजा प्राचीर का लांघ कर मंदिर में आने के लिए बनाया गया है।
मंदिर का स्थापत्य इंडो इस्लामिक यूरोपियन
जिस चबूतरे पर मंदिर बना है वह काफी ऊंचा है और बुजुर्गों और बच्चों को ऊपर ले जाने का प्रयास न करें तो ही अच्छा है। गिरने का खतरा बना रहता है। यदि ले जाते हैं तो अपने साथ सुरक्षित तरीके से ले जाएँ। मेंधाक की पीठ पर बने इस चबूतरे पर पहले एक श्रीयंत्र बना है और उसके ऊपर मंदिर बना है। मंदिर के ऊपर चढ़ने के लिए चार सीढ़ियाँ हैं जिनमें से आजकल सिर्फ एक ही खुली रहती है जिससे जाना और आना दोनों होता है। मंदिर के ऊपर एक छोटा सा कूवाँ है जो आज भी मंदिर के लिए उपयोग होता है। आज भी मंदिर में इसी से जल निकालकर पूजा अर्चना की जाती है।
अन्य मंदिरों की तरह इस शिव मंदिर में भी नंदी बाबा हैं किन्तु यहाँ के नंदी बाबा की विशेषता ये है कि ये खड़े हैं। अन्य मंदिरों में बैठे नंदी होते हैं तो यह एक भिन्नता यहाँ देखने को मिलती है। यहाँ स्थापित शिवलिंग के विषय में ये कहा जाता है कि इस लिंग का रंग बदलता रहता है। मंदिर के शिखर पर एक चक्र स्थापित था जो शायद मंदिर के रख रखाव में या किसी प्रकृतिक आपदा में टूट गया है। सुनने में आता है कि वह तांत्रिक चक्र था और सूर्य की गति के अनुरूप घूमता रहता था।
मंदिर के बाहर कुछ छोटी छोटी दुकाने हैं जो फूल पत्ती माला प्रसाद इत्यादि का प्रबंध कर देती हैं।
Негізгі бет मेंढक मंदिर| दिन भर बदलता रहता है शिवलिंग का रंग|
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