महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदनुसार 9 मई 1540 - 19 जनवरी 1597) उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे।उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल बादशहा अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया और हिंदुस्थान के पुरे मुघल साम्राज्य को घुटनो पर ला दिया
1576 के हल्दीघाटी युद्ध में 500 भील लोगो को साथ लेकर राणा प्रताप ने आमेर सरदार राजा मानसिंह के 80,000 की सेना का सामना किया।
महाराणा प्रताप का प्रथम राज्याभिषेक मेंं 28 फरवरी, 1572 में गोगुन्दा में हुआ था, लेकिन विधि विधानस्वरूप राणा प्रताप का द्वितीय राज्याभिषेक 1572 ई. में ही कुुंभलगढ़़ दुुर्ग में हुआ, दुसरे राज्याभिषेक में जोधपुर का राठौड़ शासक राव चन्द्रसेेन भी उपस्थित थे
महाराणा प्रताप के शासनकाल में सबसे रोचक तथ्य यह है कि मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था इसलिए अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किए जिसमें सर्वप्रथम सितम्बर 1572 ई. में जलाल खाँ प्रताप के खेमे में गया, इसी क्रम में मानसिंह (1573 ई. में ), भगवानदास ( सितम्बर, 1573 ई. में ) तथा राजा टोडरमल ( दिसम्बर,1573 ई. ) प्रताप को समझाने के लिए पहुँचे, लेकिन राणा प्रताप ने चारों को निराश किया, इस तरह राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया
महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर को बहुत ही दुःख हुआ क्योंकि ह्रदय से वो महाराणा प्रताप के गुणों का प्रशंसक था और अकबर जनता था की महाराणा प्रतात जैसा वीर कोई नहीं है इस धरती पर। यह समाचार सुन अकबर रहस्यमय तरीके से मौन हो गया और उसकी आँख में आँसू आ गए
चावंड राजस्थान का एक इतिहास-प्रसिद्ध कस्बा है जो महाराणा प्रताप द्वारा शासित मेवाड़ की अन्तिम राजधानी थी। यह उदयपुर शहर से मात्र 60 किलोमीटर दूर सराड़ा तहसील में पड़ता है । यहां अभी भी एक तहस-नहस हुआ 'प्रतापी किला' खड़ा प्रताप के गौरव की गाथा सुना रहा है। इसी किले के पास महाराणा प्रताप ने माता चामुंडा शक्तिपीठ की स्थापना की।
महाराणा प्रताप ने यहीं अपने जीवन के अन्तिम दिन व्यतीत किये। एक दिन अपने सख़्त धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते समय एक अंदरुनी चोट लगने से प्रताप का निधन हो गया । निधन के बाद बंदोली केजाद व चावंड के बीच बनी केजड़ झील के बीच में इनकी 8 खम्भो की छतरी बनाई गई। आज उनका चावंड में बना ये किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है।
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