#MaharshiVashishth #Vasu #Mahabharat
मेरु पर्वत के समीप पवित्र और सुन्दर आश्रम में निवास करने वाले ऋषि वशिष्ठ ‘‘वरुण‘‘ के पुत्र हैं। यह स्थान ऋषि वशिष्ठ की तपोस्थली रही है। एक दिन ‘‘पृथु‘‘ व अन्य वसु अपनी पत्नियों संग यहाँ पधारे। ‘‘द्यौ‘‘ वसु की पत्नी की दृष्टि समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली कामधेनु की पुत्री नन्दिनी पर पड़ी। जिसका दूध पिने वाला दस हजार वर्ष तक जवान रह सकता था। वसु पत्नी ने वसु से इस नंदिनी को हर लेने का सुझाव दिया। इस पर वसु ने अपने अन्य वसु भाइयों संग नंदिनी को हर लिया। महर्षि वशिष्ठ को जब यह ज्ञात हुआ तब उन्होंने वसु भाइयों को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। वशिष्ठ द्वारा दिए गए श्राप का पता चलने पर वसु नंदिनी संग महर्षि को प्रसन्न करने के लिए आश्रम पहुंचे। वसु भाइयों ने महर्षि से विनती की, की वो अपने श्राप के असर को कम करें। महर्षि ने दयावस ‘‘द्यौ‘‘ को छोड़कर सभी वसुओं को एक वर्ष तक मनुष्य योनि में रहने का और ‘‘द्यौ‘‘, जिसने नंदिनी को हरने के लिए अन्य वसुओं को प्रेरित किया था, उसे बहुत वर्षों तक मनुष्य योनि में रहने का आदेश दिया। महर्षि ने द्यौ को मनुष्य योनि में पुत्र विहीन और पिता की प्रसन्नता के लिए सदा अविवाहित व अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करने का भी श्राप दिया...........
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वीडियो में दिखाई गई फुटेज और छायाचित्रों का इस्तेमाल केवल उदाहरण के लिए किया गया है। जो google search engine से ली गई है।
Негізгі бет महर्षि वशिष्ठ ने वसुओं को श्राप क्यों दिया ? Maharshi Vashishth ka Vasuon ko Shrap | Mahabharat
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