पुण्य सलिला मां नर्मदा का कलकल निनाद जहां दिव्यता का अनुभूति कराता है, वहीं हथकरघों से आती खटखट की ध्वनि से जीवन का अनुपम राग सृजित होता है। इन्हीं करघों में लगे रंग-बिरंगे धागे जीवन का इन्द्रधनुष भी रचते हैं।
जी हां, हम बात कर रहे महेश्वरी साड़ियों की, जिनकी ख्याति न सिर्फ भारत में है बल्कि सात समंदर पार अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में भी है।
देवी अहिल्या के शासनकाल में हैदराबादी बुनकरों द्वारा महेश्वरी साड़ियों को बनाने का काम शुरू हुआ था। इसी परंपरा को कालांतर में रिचर्ड होलकर और शालिनी देवी होलकर ने रेवा सोसायटी के जरिए आगे बढ़ाया।
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Негізгі бет Maheshwari Saree : महेश्वरी साड़ियों की कहानी, बुनकरों की जुबानी । Maheshwar
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