मैं वो क़लम नहीं हूँ, जो बिक जाती है दरबारों में,
मैं शब्दों की दीपशिखा हूँ, अँधियारे चौबारों में,
मैं वाणी का राजदूत हूँ, सच पर मरने वाला हूँ,
डाकू को डाकू कहने की हिम्मत रखने वाला हूँ ,
मेरी क़लम वचन देती है अँधियारों से लड़ने की,
राजमहल के राजमुकुट के आगे तनकर अड़ने की,
उस कवि का मर जाना ही अच्छा है जो खुद्दार नहीं,
देश जले और मैं कुछ ना बोलूँ, मैं ऐसा ग़द्दार नहीं ,
मैं दरबारों के लिए समर्पण बंदन गीत नहीं गाता,
दरबारों के लिए कभी अभिनन्दन गीत नहीं गाता,
गौड़ भले हो जाऊँ लेकिन मौन नहीं हो सकता मैं,
पुत्र मोह में शास्त्र त्याग कर द्रौण नहीं हो सकता मैं,
कितना ही पहरे बैठादो मेरी क्रुध निगाहों पर,
मैं दिल्ली से बात करूँगा, भीड़ भरे चौराहों पर,
मैंने भू पर रश्मरथी का घोड़ा रुकते देखा है,
पाँच तमंचों के आगे दिल्ली को झुकते देखा है,
मैं दिनकर का वंशज, दिल्ली को दर्पण दिखलाता हूँ,
इसीलिए मैं केवल अग्निगन्धागीत सुनाता हूँ ..
For more Content, popular Hindi literature please follow my channel Chaap.
thank you friends. Let me know which one is your favourite Hindi kavita in comments below.
Негізгі бет मैं वो क़लम नहीं हूँ, जो बिक जाती है दरबारों में..
Пікірлер: 2