मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी - एक साँवली सी परछाईं | Manisha Kulshreshtha Ki Kahani | Podcast | स्वर - सिम्मी सैनी @kathasahityaprovsn2000
मनीषा कुलश्रेष्ठ -
जोधपुर में जन्मी मनीषा कुलश्रेष्ठ विज्ञान में स्नातक और हिन्दी साहित्य में एम. ए. एम. फिल और कथक में विशारद हैं।
इनके लिखे कहानी-संग्रह ‘कठपुतलियाँ’, ‘कुछ भी तो रूमानी नहीं’, ‘केयर ऑफ़ स्वात घाटी’, ‘गन्धर्व-गाथा’, ‘बौनी होती परछाईं’ काफी लोकप्रिय हैं ।
उपन्यास-‘शिगाफ़’, ֹ‘शालभंजिका’, ‘स्वप्नपाश’।
अनुवाद : माया एंजलू की आत्मकथा ‘वाय केज्ड बर्ड सिंग’ के अंश, लातिन अमरीकी लेखक मामाडे के उपन्यास ‘हाउस मेड ऑफ़ डॉन’ के अंश, बोर्हेस की कहानियों का अनुवाद।
सम्मान : ‘बिहारी पुरस्कार’, ‘चन्द्रदेव शर्मा सम्मान’, ‘रांगेय राघव पुरस्कार’ (राजस्थान साहित्य अकादेमी); ‘कृष्ण बलदेव वैद फ़ेलोशिप’; ‘कृष्णप्रताप कथा सम्मान'; ‘डॉ. घासीराम वर्मा सम्मान’ तथा कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित ।
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