मुत्यु के समय प्राणवायु की गति का ही महत्त होता है। आगे का मार्ग भी प्राण तत्त्व के द्वारा तय किया जाता है। यह प्राण तत्त्व समस्त सुक्ष्म लोकों में व्याप्त रहता है।
जिसका प्राण अधिकांश रूप में अशुद्ध होगा, मृत्य के समय उसकी अधोगति ही होगी। उस समय अपान वायु अधिक प्रभावी हो जाती है, क्योंकि ऐसे मनुष्य ने अपनी प्राणवायु कभी भी शुद्ध करने का प्रयास ही नहीं किया होता है। मनुष्य जैसा भोजन करता है और जैसा कर्म करता है उसका प्रभाव चित्त पर पड़ता है।
चित्त के साथ-साथ उसका प्रभाव प्राणों पर भी पड़ता है, इसलिए हर मनुष्य का कर्तव्य है कि वह प्राणों को शुद्ध बनाए रखने का प्रयास करता रहे।
||ॐ शान्ति विश्वम||
Негізгі бет मृत्यु के समय प्राणवायु का महत्व | importance of prana At the time of death
Пікірлер: 77