सब इंतज़ार कर रहे थे कि उनके बीच पसरा ये मौन टूटे और कृष्ण ऋषि के गुस्से और श्राप से बचने का कोई उपाय बताएं...
आखिर कृष्ण ने अपना मौन तोड़ा और बोले- इस फल को वापस पेड़ पर लगाने का एक ही तरीका है और वो ये कि तुम सबको बारी बारी अपने भीतर छिपे राज़ खोलने होगे,कहना होगा वही जो तुम्हारे मन में है...खोलने होने मन के भेद...याने सच कहना होगा...सच के सिवा कुछ नहीं !!
कृष्ण की बात सुन कर सबसे पहले युधिष्ठिर आगे आये...
आगे क्या हुआ जानने के लिए सुनिए ये कहानी...
बात बेबात पे अपनी ही बात कहता है
मेरे अंदर मेरा छोटा सा शहर रहता है
दुनिया की मसरूफियत से दूर एक दुनिया ऐसी भी है, जिसमें कहानियाँ रहती हैं...कहानियाँ, जिनमें रिश्ते हैं, उलझनें हैं, प्यार है, मिलना है, बिछड़ना है...कहानियाँ जिनमें आप ख़ुद हैं। मेरे साथ चलिए कहानियों के ऐसे ही ख़ूबसूरत सफ़र पर
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