वास्तव में नारीवादी आंदोलन पश्चिम की देन है । तो प्रश्न यह उठता है कि क्या नारीवाद को भारत में लागू किया जा सकता है या नहीं। भारत में नारीवाद को उस रूप में नहीं लागू किया जा सकता है। जिस प्रकार से पश्चिम में भारत में महिला बचपन में पिता युवावस्था में पति तथा वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन रही है। यहां पर प्राचीन काल से ही स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में निम्न कोटि का माना गया है। स्त्री को दास या सेविका तथा पुरुष को स्वामी का दर्जा प्रदान किया गया है। इसका प्रमाण प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। मनु स्मृति, मिताक्षरा आदि ग्रंथों से जानकारी मिलती है कि प्राचीन काल में स्त्रियों की स्थिति काफी खराब थी
नारीवाद का अर्थ (Meaning of
Feminism) )
सभी क्षेत्रों में स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार देने के लिए स्त्रियों के समर्थन से उत्पन्न हुए सामाजिक आंदोलन को नारीवाद कहा जाता है यह एक ऐसा विचार है जो स्त्री और पुरुष के बीच असमानता को अस्वीकार कर नारी के बौद्धिक और व्यवहारिक रूप में सशक्तिकरण पर बल देता है । यह लैंगिक भेदभाव को अस्वीकार करता है । जो मूलतः नारी की स्थिति का प्रमुख कारण है । इस विचारधारा की उत्पत्ति प्रमुखता पितृसत्तात्मकता (पुरुष प्रभुत्व या पुरुष द्वारा शक्ति के दुरुपयोग करने की सत्ता) के विरोध स्वरूप उत्पन्न हुआ
पुरुष वर्चस्व समाज की स्थापना, जेंडर डिफरेंस की समाप्ति पर बल, सामाजिक न्याय पर बल, नारी अधिकार की मांग, आर्थिक स्वतंत्रता, नारी स्वतंत्रता की आवश्यक शर्त हैं ।
पितृसत्तात्मकता (Patriarchy in hindi)
प्राचीन काल से ही समाज में यह धारणा विद्यमान रही है कि पुरुष का कार्य घर के बाहर और स्त्री का सरोकार घर के अंदर के कामों से है। जैसे भोजन बनाना, बच्चों की देखभाल तथा बड़ों की सेवा आदि ।
आधुनिक समाज एक पुरुष प्रधान समाज है, जो पुरुषों की श्रेष्ठता में विश्वास करता है तथा सदैव स्त्रियों के संबंध में यह धारणा रही है कि स्त्री हीन होती है पितृसत्तात्मकता इसका एक प्रमुख कारण रही है। इस व्यवस्था में परिवार के प्रबंधन में पुरुषों का वर्चस्व रहता है । वही निर्णय करता है और सलाह देता है। इसके कारण भी अपनी इस सत्ता का प्रयोग स्त्रियों पर किया ।
नारीवादकीसंकल्पनाक्याहै
नारीवादकाअर्थबताइए
#saistudy99
Негізгі бет नारीवाद की संकल्पना क्या है ||और नारीवाद का अर्थ बताइए
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