आनंद सिंधु बढ्यौ हरि तन में।
राधामुख पूरण शशि निरखत उमगि चल्यौ ब्रज वृंदावन में।
इत रोक्यौ यमुना उत गोपिन कछु एक फैल पर्यौ त्रिभुवन में।
ना परसौ कर्मठ और ज्ञानी अटक रह्यौ रसिकन के मन में।
मंद मंद अवगाहत बुद्धि बल भक्त हेत लीला छिन-छिन में।
कछु एक लह्यौ नंदसुवन कृपा ते सो देखियत परमानंदजन में।।
डॉ भगवान दास कीर्तनकार कामवन
(अष्टसखा श्री गोविन्दस्वामी जी के वंशज)
9828737151
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Негізгі бет आनन्द सिन्धु बढ्यौ हरि तन में: सत्संग कथा satsang katha by Dr Bhagwan Das
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