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सिवान .. .. .. बिहार राज्य का एक जिला जिसका मतलब होता है "बॉर्डर" . . . और जैसा नाम वैसा ही पहचान। जी हाँ, सिवान शहर बिहार के उत्तर पश्चिमी सीमा पर स्थित है। इस शहर का पुराना नाम "अलीगंज" था, जिसे बाद में बदल के "सिवान" रखा गया।
इस शहर की अपनी एक पहचान है। देश के पहले राष्ट्रपति "देशरत्न डॉ० राजेंद्र प्रसाद" इसी शहर के एक गाँव जीरादेई से थे जो टाउन से लगभग 9 किमी रूर पश्चिम दिशा में है। इस शहर को यहाँ के भूतपूर्व सांसद डॉ० शहाबुद्दीन के नाम से भी जाना जाता है।
अपने शहर की सबसे बड़ी खास बात ये है की यहाँ हर प्रकार के लोग मिलजुल के प्यार मोहब्बत के साथ रहते हैं। पर्व हो या त्यौहार हम सब मिलकर मानते हैं।
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सिवान शहर का नामकरण और इतिहास
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सिवान का नामाकरण मध्यकाल में यहाँ के राजा 'शिव मान' के नाम पर हुआ है। उनके पूर्वज बाबर के यहाँ आने तक शासन कर रहे थे। इसका एक अनुमंडल महाराजगंज है जिसका नाम इस क्षेत्र पर राज कर रहे महाराजा का घर या किला स्थित होने के चलते पड़ा है। इसी जिला के एक सामंत अली बक्श के नाम पर इसे अलीगंज भी पुकारा जाता था. पाँचवी सदी ईसापूर्व में सिवान की भूमि कोसल महाजनपद का अंग था। कोसल राज्य के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में सर्पिका (साईं) नदी, पुरब में गंडक नदी तथा पश्चिम में पांचाल प्रदेश था। इसके अंतर्गत आज के उत्तर प्रदेश का फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर तथा देवरिया जिला के अतिरिक्त बिहार का सारन क्षेत्र (सारन, सिवान एवं गोपालगंज) आता है। आठवीं सदी में यहाँ बनारस के शासकों का आधिपत्य था। १५ वीं सदी में सिकन्दर लोदी ने यहाँ अपना आधिपत्य स्थापित किया। बाबर ने अपने बिहार अभियान के समय सिसवन के नजदीक घाघरा नदी पार की थी। बाद में यह मुगल शासन का हिस्सा हो गया। अकबर के शासनकाल पर लिखे गए आईना-ए-अकबरी के विवरण अनुसार कर संग्रह के लिए बनाए गए ६ सरकारों में सारन वित्तीय क्षेत्र एक था और इसके अंतर्गत वर्तमान बिहार के हिस्से आते थे। १७वीं सदी में व्यापार के उद्देश्य से यहाँ डच आए लेकिन बक्सर युद्ध में विजय के बाद सन १७६५ में अंग्रेजों को यहाँ का दिवानी अधिकार मिल गया। १८२९ में जब पटना को प्रमंडल बनाया गया तब सारन और चंपारण को एक जिला बनाकर साथ रखा गया। १९०८ में तिरहुत प्रमंडल बनने पर सारन को इसके साथ कर इसके अंतर्गत गोपालगंज, सिवान तथा सारन अनुमंडल बनाए गए। १८५७ की क्रांति से लेकर आजादी मिलने तक सिवान के निर्भीक और जुझारु लोगों ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ी। १९२० में असहयोग आन्दोलन के समय सिवान के ब्रज किशोर प्रसाद ने पर्दा प्रथा के विरोध में आन्दोलन चलाया था। १९३७ से १९३८ के बीच हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान राहुल सांकृत्यायन ने किसान आन्दोलन की नींव सिवान में रखी थी। स्वतंत्रता की लड़ाई में यहाँ के मजहरुल हक़, राजेन्द्र प्रसाद, महेन्द्र प्रसाद, फूलेना प्रसाद जैसे महान सेनानियों नें समूचे देश में बिहार का नाम ऊँचा किया है। स्वतंत्रता पश्चात १९८१ में सारन को प्रमंडल का दर्जा मिला। जून १९७० में बिहार में त्रिवेदी एवार्ड लागू होने पर सिवान के क्षेत्रों में परिवर्तन किए गए। सन 1885 में घाघरा नदी के बहाव स्थिति के अनुसार लगभग 13000 एकड़ भूमि उत्तर प्रदेश को स्थानान्तरित कर दिया गया जबकि 6600 एकड़ जमीन सिवान को मिला। १९७२ में सिवान को जिला (मंडल) बना दिया गया।
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सीवान शहर का इतिहास, उम्मीद है आपको पसंद आएगी
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बिहार एक ऐसा राज्य है जहाँ के हर एक जिले की एक अलग ही अपनी पहचान है। उन्ही जिलों में से एक जिला ऐसा है जो महाभारत काल से अपनी पहचान बनाता चला आ रहा है। ऐसे महान जिले का नाम है “सीवान” जो बिहार के उत्तर पश्चिमी छोर पर उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है। इसके उतर में गोपालगंज जिला एवं पूर्व में छपरा जिला तथा दक्षिण में उत्तर प्रदेश का देवरिया जिला एवं पश्चिम में बलिया जिला इस्थित है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा॰ राजेन्द्र प्रसाद तथा कई अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मभूमि एवं कर्मस्थली के लिए सीवान जिला को जाना जाता रहा है।
सीवान जिला का नामकरण
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सीवान का नाम मध्यकाल में यहाँ के महाराजा रहे ‘शिव मान’ के नाम पर रखा गया है। महाराजा शिव मान के पूर्वज बाबर के यहाँ आने तक शासन कर रहे थे। बाद में यह मुगल शासन का हिस्सा हो गया। सीवान जिले का इतिहास महाभारत काल से ही चला आ रहा है। ईसापूर्व पाँचवी सदी में सीवान की भूमि कोसल महाजनपद का अंग था। कोसल राज्य के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में सर्पिका (साईं) नदी, पुरब में गंडक नदी तथा पश्चिम में पांचाल प्रदेश था। इसके अंतर्गत आज के बिहार का सारन क्षेत्र छपरा, सीवान एवं गोपालगंज के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश का फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर एवं देवरिया जिला आता था। आठवीं सदी में सीवान की भूमि बनारस के शासको के आधीन था। पंद्रहवीं सदी में सिकन्दर लोदी ने यहाँ अपना आधिपत्य स्थापित किया था। बाबर ने अपने बिहार अभियान के समय सिसवां के नजदीक घाघरा नदी पार की थी। उसके बाद यह मुगल शासन का हिस्सा हो गया। 1908 में तिरहुत प्रमंडल बनने पर सारन को इसके साथ कर के सीवान को अनुमंडल बनाए गए था। 1920 में असहयोग आन्दोलन के समय सीवान के ब्रज किशोर प्रसाद ने पर्दा प्रथा के विरोध में आन्दोलन चलाया था। 1937 में हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान राहुल सांकृत्यायन ने किसान आन्दोलन की नींव सीवान में रखी थी। 1972 में सीवान को सारन से अलग कर जिला (मंडल) बना दिया गया।
उम्मीद है उपरोक्त जानकारी आपको पसंद आई होंगी
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प्रस्तुति - खान हैदर (एडमिन)
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Негізгі бет आनंद विहार से कामाख्या को जाने वाली सप्ताहिक एक्सप्रेस पचरुखी से निकलती हुई
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