नारद भक्ति दर्शन-10,
जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा
नारद भक्ति दर्शन के 84 सूत्रों की व्याख्या
शृंखलाबद्ध 11 प्रवचनों में की गई,
यहाँ उन्हीं को यथावत् प्रस्तुत किया गया है
"अगर मूर्ति में पूर्ण भगवान की भावना नहीं है
तो उसको मूर्ति पूजा नहीं कहते
उसको पत्थर पूजा कहते हैं।
उसको फल पत्थर का मिलेगा।
वो चाहे दिन-रात पूजा किया करे।
हमारी भावना...
'न शिलायां विद्यते देवो'
मूर्ति में, पत्थर में, मिट्टी में भगवान स्पेशल रहते हैं
ऐसा नहीं है।
वैसे तो 'प्रभु व्यापक सर्वत्र समाना'
लेकिन, ये आप कहें कि
बिहारी जी के मन्दिर वाले जो श्रीकृष्ण हैं
उनमें खास बात है,
और तुम्हारे घर में जो तुम बाजार से ख़रीदके लाये हो एक ठाकुर जी,
उनमें कम व्याप्त हैं भगवान,
ऐसा नहीं है।
भगवान तो सर्वव्यापक हैं, समान रूप से।
लेकिन हम जहाँ भावना बना लें,
ये हमारे ऊपर है,
हमारी भावना...जी ये घर वाले हम बाजार से जो ख़रीदके लाये हैं,
उनमें नहीं बनती जी उतनी बढ़िया
और बिहारी जी के मंदिर में ज्यादा बनती है,
तो बस ठीक है,
तुम्हारी भावना का फल तुमको मिलेगा,
वो मूर्ति-वूर्ति में कोई बात नहीं है कहीं।"
-जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
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नारद जी भक्ति के प्रमुख आचार्य माने जाते हैं। इन्होंने भक्ति सम्बन्धी समस्त शास्त्रीय ज्ञान
चौरासी सूत्रों के रूप में प्रकट किया है,
जो ‘नारद भक्ति दर्शन’ के नाम से विख्यात है, किन्तु उनकी व्याख्या करना साधारण बुद्धि के द्वारा सम्भव नहीं है। कोई श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष ही उनकी दिव्य वाणी का सही सही अर्थ समझ सकता है।
भगवद् रसिक रसिक की बातें,
रसिक बिना कोऊ समुझ सकै ना।
श्री महाराज जी द्वारा भक्ति धाम मनगढ़ में अक्टूबर १९९० में ग्यारह प्रवचनों के रूप में इन सूत्रों की जो व्याख्या की गई है वह विलक्षण ही है। इस प्रवचन शृंखला में श्री महाराज जी ने इतना अधिक तत्त्व ज्ञान भर दिया है कि भक्तिमार्गीय किसी भी साधक के लिए इससे अधिक और कुछ सुनने समझने की आवश्यकता ही नहीं है। यद्यपि इन सूत्रों में नारद जी ने सिद्धा भक्ति के स्वरूप का निरूपण किया हैं, किन्तु श्री महाराज जी ने इस प्रकार से व्याख्या की है कि साधना भक्ति- श्रवण, कीर्तन, स्मरण का स्वरूप भी पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है। यानी सिद्धा भक्ति अर्थात् दिव्य प्रेम प्राप्ति का पात्र कैसे तैयार किया जाय, इसका भी वर्णन इतने सरल एवं सरस ढंग से किया गया है कि जनसाधारण भी हृदयंगम कर सकता है। कुछ श्रोताओं ने तो यहाँ तक लिख कर भेजा है कि सम्भवतया नारद जी स्वयं भी इन सब सूत्रों की व्याख्या करते तो इतनी सुन्दर व्याख्या न कर पाते।
श्रोताओं के प्रेमाग्रह पर दुर्लभ प्रवचनों की यह पूरी श्रृंखला एक प्लेलिस्ट के रूप में हमारे यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है।
• नारद भक्ति दर्शन | Nar...
आध्यात्मिक जगत् की यह एक अमूल्य निधि है।
इन्हें बार-बार सुनकर आप जितना लाभ लेना चाहें ले सकते हैं।
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कलियुग में दान को ही कल्याण का एकमात्र माध्यम बताया गया है। 'दानमेकं कलौयुगे'।
दान पात्र के अनुसार ही अपना फल देता है
तथा भगवान एवं महापुरुष के निमित्त
किया गया दान सर्वोत्कृष्ट फल प्रदान करता है।
हम साधारण जीव यथार्थ में यह नहीं जान सकते कि वास्तविक महापुरुष के प्रति किया गया हमारा दान/समर्पण हमारे कल्याण का कैसा अद्भुत द्वार खोल देगा। अतएव, समर्पण हेतु आगे बढ़िये।
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