पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी,
झड़ी लगी रे झड़ी लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।
झड़ी लगी, झड़ी लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।
बुंद का प्यासा घड़ा भर पाया,
सपनें में वो स्वाद ना आया,
कौन किसे कैसे समझाये,
एक बुंद की तरण लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।
प्यास बीना क्या पीये रे पाणी,
प्यास के लिये हे वो पाणी,
बिना अधिकार कोई नही जाणी,
अमृत रस की झड़ी लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।
अमृत पीये अमर पद पावे,
भव योनी में कभी न आवे,
जरा मरण को दुःख न सावे,
थारे घट गगरीया भरण लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।
अमृत बूँद गुरूजी की बाणी,
जीवन रस्ता है यह बाणी,
कबीर संगत में हो हमारी,
डाली प्रेम की वा हरी लगी।
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी,
झड़ी लगी रे झड़ी लगी,
पीले अमीरस धारा,
गगन में झड़ी लगी।
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