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Sri Padma Purana (Sanskrit Text with Hindi Translation) amzn.eu/d/86KPIwH
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पुस्तक परिचय
महर्षि बादरायण प्रणीत पुराणों में आकार की दृष्टि से पचपन हजार श्लोकों वाला पद्मपुराण का स्थान द्वितीय है । ब्रह्माजी ने सभी शास्त्रों में पुराणों का प्रथम स्थान बतलाया है। 'पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्' अर्थात् पुराण साक्षात् वेदार्थ स्वरूप हैं।
पद्मपुराण में सात खण्ड हैं- 1. सृष्टिखण्ड (82 अध्याय), 2. भूमि खण्ड (125 अध्याय), 3. स्वर्ग खण्ड (आदि खण्ड ) ( 62 अध्याय), 4. ब्रह्मखण्ड (26 अध्याय), 5. पातालखण्ड (117 अध्याय), 6. उत्तरखण्ड (255 अध्याय), एवं 7. क्रियायोगसार खण्ड (26 अध्याय)
सात खण्ड रूपी सात दलों वाला यह पुराण ही महापद्म है । इस महापद्मस्वरूप महापुराण से ही यह सप्त पातालात्मक तथा सप्तभूम्यादि लोकात्मक जगत् उत्पन्न हुआ है भगवान् के नाभिकमल से उद्भूत ब्रह्माजी के; पद्मापरपर्यायभूत पुष्कर क्षेत्र के यज्ञ के वर्णन से प्रारम्भ होने के कारण इस पुराण का नाम पद्मपुराण है । पाद्मकल्प की कथा से ही इस पुराण का प्रारम्भ हुआ है इसलिए भी इसका नाम पद्मपुराण है।
अठारहो पुराणों को तीन भागों में विभक्त किया गया है- सात्त्विक, राजस और तामस पद्मपुराण सात्त्विक पुराणों में प्रथम है। इस पुराण में प्रधानरूप से भगवान् विष्णु का ही माहात्म्य वर्णित है। कथाओं की दृष्टि से तो यह कथाओं का विश्वकोश है।
पर्वों को दृष्टिपथ में रखकर पद्मपुराण को पाँच पर्वों में विभक्त किया गया है उसके प्रथम पर्व का नाम पुष्कर पर्व है। इसमें विराट् की उत्पत्ति बतलायी गयी है । इसका दूसरा पर्व तीर्थ पर्व है जिसमें सभी तीर्थों का वर्णन किया गया है। तीसरे पर्व में उन राजाओं का वर्णन है जिन राजाओं ने बहुत अधिक दक्षिणा देकर यज्ञों का अनुष्ठान किया । चौथे पर्व में विभिन्न वंशों के प्रख्यात राजाओं का चरित वर्णित है और पाँचवें पर्व में मोक्षतत्त्व को सर्वश्रेष्ठ तत्त्व बतलाया गया है। सृष्टिखण्ड में विशेष रूप से ब्रह्माजी के द्वारा की गयी नव प्रकार की सृष्टियों का वर्णन है पद्मपुराण में अनेक प्रकार के आत्मोन्नयन कारक व्रतों, दानों तथा प्रायश्चित्तों का सविशेष वर्णन है।
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