"बहुत दर्द होता है ये देखकर , कि उजड़ रहा है घर अपना।"
इस दर्द की एक पुरानी कहावत है, कि पहाड़ों की जवानी और पहाड़ों का मिट्टी पानी कभी खुद पहाड़ों के काम नहीं आता। आज भी उत्तराखंड की यही दशा और दिशा बरकरार है। राज्य आंदोलनकारियों का सपना पूरा तो हो गया, लेकिन समस्याएं अभी भी जस की तस बनी हुई हैं
रोजगार के मौकों की कमी, शिक्षा की समुचित व्यवस्था का अभाव और खेती बाड़ी में आने वाली मुश्किलों ने हमेशा पहाड़ के लोगों को अपनी जड़ों को छोड़ने पर मजबूर किया है।
उत्तराखंड के गांव तेज़ी से वीरान होते जा रहे हैं।
पहाड़ी गांवों में बस वे ही लोग बचे हैं जो पलायन करने में सक्षम नहीं हैं। एक समय लोगों से गुलजार रहने वाली शानदार बाखलियाँ आज वीरान खंडहर सी नजर आती हैं। हरे भरे सुख चैन वाले गांव उजड़ने लगे हैं। इस गम्भीर समस्या की वजह सभी जानते हैं लेकिन निदान किसी के पास नहीं है।
महाशिवरात्रि के दिन अपने क्षेत्र के नाकोट स्थित खड़केश्वर महादेव में जाने का सौभाग्य मिला।
वहां चर्चा करते करते अचानक नाकोट गाँव के कुछ मित्रों ने आग्रह किया कि हमारे गाँव की समस्या को भी आप अपने चैनल के माध्यम से उठाइये।
मेरे मित्र प्रकाश लोहनी जी और उनके भाई कौस्तुभ लोहनी जी के साथ गांव घूमने के दौरान जो तस्वीरें नजर आयीं वो काफी दुःखी कर देने वाली थीं।
लोहुमी(लोहनी) जाति के उच्च कुलीन ब्राह्मणों का ये गांव पहले जितना खुशहाल था आज उतना ही वीरान हो चुका है।
हर 3 में से एक घर खाली दिखा।
कुछ पुरानी यादों और गाँव की वर्तमान स्तिथि को गांव के सयाने लोगों के साथ साझा किया जिसे वीडियो के माध्यम से आपने सामने लाने की एक कोशिश की है।
पलायन के वर्तमान हालातों पर आप सबके सुझावों का स्वागत है।
पूरी वीडियो
A FELLOW TRAVELLER पर जाकर आप देख सकते हैं।
चन्द्रशेखर पांडेय,
बागेश्वर
Негізгі бет पहाड़ों में पलायन से खाली हो चुकी बाखलियाँ अपनी वीरानी की कहानियां खुद कहती हुईं
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