Written and Composed by Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj
Prem Ras Madira - Biraha Madhuri
पथिक ! तुम इतनो कहियो जाय।
अब न कबहुँ कछु कहिहौं लाल सौं, एक बार आ जाय ।
ऊखल माहि न कबहुँ बांधिहौं, कितै उरहनो आय |
माखन-चोरी ते न रोकिहौं, करै जोइ मनभाय ।
जो कोउ ब्रज में कान्हहि छेड़े, वाको दऊँ बंधाय ।
मोको माय न मानें तबहूँ, नातो मानें 'धाय' |
इमि ‘कृपालु' कहि यशुमति बिलपति, दृग अंसुवन झरि लाय ॥
भावार्थ-(यशोदाजी अपने लाला के वियोग में एक पथिक से श्रीकृष्ण के लिए संदेश भेजती हैं )।
यशोदाजी कहती हैं कि हे राहगीर ! तुम मेरे लाला से इतनी ही कह देना कि वह एक बार आकर और देख जाय। यदि उसे कोई कष्ट हो तो फिर चला जाय । मैं अब अपने लाला से कभी कुछ नहीं कहूँगी, एवं गोपियों के कितने ही उलाहने क्यों न आयें मैं अपने लाला को कभी भी ऊखल में नहीं बाँधूगी। मक्खन चुराने से भी मैं अब कभी नहीं रोकूँगी | जो इच्छा हो वही करे। जो कोई ब्रज में मेरे कन्हैया को छेड़ेगा उसे बंधा दूंगी। हे पथिक ! मेरे लाला से कहना कि यदि वह मेरे पास मैया के नाते न आ सके तो भी कम-से-कम पालने वाली धाय के ही नाते आ जाय । “कृपालु" कहते हैं कि यशोदाजी पथिक से अपने लाला के लिए इस प्रकार सन्देश कहती हुई आँखों से आँसुओं की झड़ी लगाकर विविध प्रकार से विलाप करने लगीं।
Негізгі бет Pathika ! Tum Itno Kahiyo Jaay | Janmashtami Special Bhajan | Kripaluji Maharaj Bhajan |
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