मान्यता: किवदंती के अनुसार गाय चुगाते वक्त बच्चों ने शरारत में एक बालिका को खड्ड में दबा दिया. इसके बाद वे अपने घर चले गए, लेकिन बालिका वहीं दबी रह गई. रात्रि में वह गांव के प्रधान के सपने में जानकर घटना बताती है और कहती है कि उसने काली का रूप ले लिया है. उसका मंदिर निर्मित कर उनकी पूजा शुरू करो. काली का मंदिर बनने के बाद वह आवाज देकर लोगों को हर घटना की जानकारी देती थी. इस बीच, गोरखाओं ने आक्रमण किया तो वह गांव में पहुंचने से पहले आवाज देकर गोरखाओं की सूचना दे देती. गोरखाओं ने तंत्र से खड्ड में दबी देवी को उलटा कर दिया. तब से आवाज बंद हुई. कालिंका के इसी खड्ड में पहले सैकड़ों की तादाद में पशु बलि दी जाती थी. माना जाता था कि बलि के बाद देवी की कृपा प्राप्त होती है. वर्ष 2011 से पशुबलि बंद हो चुकी है. अब गांव ग्रामीण मेले के दिन ढोल-दमाऊ, निसांण और डोली लेकर मंदिर में सात्विक पूजा-अर्चना करते हैं.
- Күн бұрын
प्रसिद्ध बूंखाल कालिंका मेला❤️|| यहां सबकी मनोकामना पूर्ण होती है।🙏
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