पुण्याहवाचन के दिन आरम्भें वरुण-कलशके पास जलसे भरा एक पात्र (कलश) भी रख दे । वरुण-कलशके पूजनके साथ-साथ
इसका भी पूजन कर लेना चाहिए । पुण्याहवाचनका कर्म इसीसे किया जाता है । सबसे पहले वरुणकी प्रार्थना करे ।
वरुण प्रार्थना -
ॐ पाशपाणे नमस्तुभ्यं पद्मिनीजीवनायक ।
पुण्यावाचनं यावत् तावत् त्वं सुस्थिरो भव ॥
यजमान अपनी दाहिनी ओर पुण्याहवाचन-कर्मके लिए वरण किये हुए युग्म ब्राह्मणोंको, जिनका मुख उत्तरकी ओर हो, बैठा ले ।
इसके बाद यजमान घुटने टेककर कमलकी कोंढ़ीकी तरह अञ्जलि बनाकर सिरसे लगाकर तीन बार प्रणाम करे । तब आचार्य
अपने दाहिने हाथसे स्वर्णयुक्त उस जलपात्र (लोटे) को यजमानकी अञ्जलिमे रख दे । यजमान उसे सिरसे लगाकर
निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर ब्राह्मणोंसे अपनी दीर्घ आयुका आशीर्वाद मांगे -
यजमान - ॐ दीर्घा नागा नद्यो गिरयस्त्रीणि विष्णुपदानि च ।
तेनायुः प्रमाणेन पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु ॥
यजमानकी इस प्रार्थनापर ब्राह्मण निम्नलिखित आशीर्वचन बोले-
ब्राह्मण - अस्तु दीर्घमायुः ।
अब यजमान ब्राह्मणोंसे फिर आशीर्वाद मांगे -
यजमान -
ॐ त्रीणि पदा वि चक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्यः । अतो धर्माणि धारयन् ॥
तेनायुः प्रमाणेन पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु इत भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु ।
यजमान और ब्राह्मणोंका यह संवाद इसी आनुपूर्वीसे दो बार और होना चाहिये । अर्थात् आशीर्वाद मिलनेके बाद यजमान
कलशकोसिरसे हटाकर कलशके स्थानपर रख दे । फिर इस कलशको सिरसे लगाकर-
'ॐ दीर्घा नागा नद्यो.... रस्तु'
बोले इसके बाद ब्राह्मण
'दीर्घमायुरस्तु' बोलें ।
इसके बाद यजमान पहलेकी तरह कलशको कलश-स्थानपर रखकर फिर सिरसे लगाकर
'ॐ दीर्घा नागा....रस्तु'
कहकर आशीर्वाद मांगे और ब्राह्मण
'दीर्घमयुरस्तु'
यह कहकर आशीर्वाद दें ।
यजमान - ॐ अपां मध्ये स्थिता देवाः सर्वमप्सु प्रतिष्ठितम् ।
ब्राह्मणानां करे न्यस्ताः शिवा आपो भवन्तु नः ॥
ॐ शिवा आपः सन्तु ।
ऐसा कहकर यजमान ब्राह्मणोंके हाथोंमें जल दे ।
ब्राह्मण - सन्तु शिवा आपः ।
अब यजमान निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर ब्राह्मणोंके हाथोंमें पुष्प दे -
Негізгі бет पुण्याहवाचन की विधि। पुण्याहवाचन मंत्र। पुण्याहवाचन कैसे करें। Punyahavachan Vidhi Mantra Sahit.
Пікірлер