|| श्रीगोवर्धनाष्टकम् ||
कृष्णप्रसादेन समस्तशैल
साम्राज्यमाप्नोति च वैरिणोऽपि ।
शक्रस्य यः प्राप बलिं स साक्षा-
द्गोवर्धनो मे दिशतामभीष्टम् ॥ १॥
स्वप्रेष्ठहस्ताम्बुजसौकुमार्य
सुखानुभूतेरतिभूमि वृत्तेः ।
महेन्द्रवज्राहतिमप्यजानन्
गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ २॥
यत्रैव कृष्णो वृषभानुपुत्र्या
दानं गृहीतुं कलहं वितेने ।
श्रुतेः स्पृहा यत्र महत्यतः श्री
गोवर्धनो मे दिषतामभिष्टम् ॥ ३॥
स्नात्वा सरः स्वशु समीर हस्ती
यत्रैव नीपादिपराग धूलिः ।
आलोलयन् खेलति चारु स श्री
गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ ४॥
कस्तूरिकाभिः शयितं किमत्रे-
त्यूहं प्रभोः स्वस्य मुहुर्वितन्वन् ।
नैसर्गिकस्वीयशिलासुगन्धै-
र्गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ ५॥
वंशप्रतिध्वन्यनुसारवर्त्म
दिदृक्षवो यत्र हरिं हरिण्याः ।
यान्त्यो लभन्ते न हि विस्मिताः स
गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ ६॥
यत्रैव गङ्गामनु नावि राधां
आरोह्य मध्ये तु निमग्ननौकः ।
कृष्णो हि राधानुगलो बभौ स
गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ ७॥
विना भवेत्किं हरिदासवर्य
पदाश्रयं भक्तिरतः श्रयामि ।
यमेव सप्रेम निजेशयोः श्री
गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ ८॥
एतत्पठेद्यो हरिदासवर्य
महानुभावाष्टकमार्द्रचेताः ।
श्रीराधिकामाधवयोः पदाब्ज
दास्यं स विन्देदचिरेण साक्षात् ॥ ९॥
अद्भुत व्याख्यान ❣- परमपूज्य मनमाध्व गौड़ेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज द्वारा।।
वर्तमान में साधको के ,युवाओं के ,जिज्ञासुओं को कथामृत से तृप्त करते हुए,श्री धाम वृन्दावन मे विराजित स्वयम्भू ठाकुर श्री राधारमण जू के निज अति प्रिय श्री महाराज जी वर्तमान मे युवाओं के मध्य आदर्श हैं।
भक्तिमार्ग की सभी गहराइयों को रसयुक्त प्रामाणिक शास्त्रीय विवेचना से प्रदर्शित करते हुए सभी को श्री राधारमण जी की अहैतुकी कृपा प्रदान करने के लिए सदैव बद्ध महाराज जी श्री कृष्णचैतन्य महाप्रभु जी के द्वारा पट्टाभिषिक्त श्री मनमाध्व गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय आद्याचार्य श्रीपाद गोपालभट्ट गोस्वामीपाद जू की परम्परा के 38वीं पीढ़ी के आचार्य हैं।।
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