एक कहानी है जो स्वर्ग में घटती है। भगवान शिव, अपने दोनों पुत्र - श्री गणेश जी और श्री कार्तिकेय जी के साथ बैठे थे। तब वहाँ पर एक संत एक आम के फल के साथ पधारें।
उन्होंने कहा "यह एक दिव्य आम है। मैं इसे आप को अर्पण करना चाहता हुँ। लेकिन मेरी एक शर्त है"
तब शिवजी ने उनसे कहा, "आप एक नयीं समस्या शुरू करने जा रहें हो ऋषीवर। बताईये, आप की शर्त क्या हैं?"
फिर वे संत कहने लगें, "यह एक दिव्य आम है जिसे आप के दोनों पुत्रों में से केवल कोई एक ही ग्रहण कर सकता है। इसे काँटकर खाना नहीं हैं।"
तो, अब यह प्रश्न उपस्थित हुवा की यह आम का फल किसके पास होगा?
तब शिवजी ने कहा, "मैंने आप से कहा था कि आप एक समस्या शुरू करने जा रहे हो। अब आप ही बताईयें की यह आम किसके पास होगा? आपने कहा था कि इसे सामायिक नहीं किया जाना चाहिए।"
ऋषी कहतें हैं, "ठीक है, हमें एक प्रतियोगिता करतें हैं। जो कोई इस प्रतियोगिता को जीतता है उसे आम मिलता है।"
शिवजी कहतें है, "प्रतियोगिता क्या है?"
ऋषी कहतें हैं, "प्रतियोगिता यह है कि जो कोई भी ब्रह्मांड के चारों ओर जाता है और इस स्थान पर सबसे पहले वापस आता है, यानी विश्वप्रदक्षिणा करता है, उसे आम मिलेगा। ठीक है?"
शिवजी कहतें हैं, "ठीक है।"
अब आप, शिवजी के पुत्रों की तरफ एक बार नज़र डालिएँ।
एक ओर श्री गणेशजी है, जिनका तन भारी है और मस्तक भी हाथी का है। उनका वाहन भी, एक चुहा है।
और दुसरी ओर, मुरूगा, या कार्तिकस्वामी जी है, जो की अत्यंत सुंदर हैं, तनदुरूस्त है। तथा, उनका वाहन आकाशमार्ग से जानेवाला मोर है।
शिवजी ने अपने दोनों पुत्रों को विश्वप्रदक्षिणा करने को कहा।
शिवजी का केवल वाक्य सुनतें ही उनके ज्येष्ठ पुत्र मुरूगा, या कार्तिकेय स्वामी, आपने मोर पर विराजमान हो गए और आकाश मार्ग से पृथ्वीप्रदक्षिणा करने निकल गए।
किंतु गणेशजी ने ऐसा नहीं किया।
वे नदी पर गए, स्नान किया, और वापस आकर शिवजी और माता पार्वती को प्रदक्षिणा लगाकर बोलें, “मैं जित गया, मुझे आम दे दिजीए।”
तब वहाँपर उपस्थित ऋषी आश्चर्यचकित हुए और बोलें, “यह आप क्या बोल रहें है गणेशजी? आप अभी पृथ्वीप्रदक्षिणा के लिए गए ही कहाँ हैं?”
तब गणेशजी ने उत्तर दिया, “हे ऋषिवर, पुर्ण ब्रह्मांड का निर्माण स्वयं मेरे पिताश्री भगवान शिवजी ने किया है, उसका पोषण भी वहीं करतें हैं, तथा संहार भी वहीं करतें है। ऐसा इसलिए है क्योंकी मेरे पिताश्री शिवजी, और मेरी माताश्री, माता पार्वती, दोनों ही साक्षात ब्रह्मांड हैं। तो मुझे कहीं और जाकर विश्वप्रदक्षिणा करने की क्या आवश्यकता? मेरा कार्य तो यहीं संपन्न हो गया। अब लाईये, आम का फल मुझे दे दिजीए।”
श्री गणेशजी की ये बात सुनकर शिवजी को और ऋषीवर को आम का फल श्री गणेशजी को ही देना पड़ा।
इस कथा से हम क्या समझ सकतें हैं?
इस कथा से हम श्री गणेश जी की अतुलनिय बुद्धीमत्ता की एक झलक देख सकतें हैं, और वे कोई भी कार्य करने के लिए शॉर्टकट कैसे बना सकतें है, इस बात को समझ सकतें हैं।
कल्याणमस्तु।
श्री गणेश जी - "शॉर्टकट" के देवता । पिल्लई सेंटर हिंदी
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