संगमरमर से बना ऐतिहासिक कुआं आज संरक्षण के अभाव में जर्जर हो रहा है। कलात्मकता व धार्मिक आस्था का केंद्र यह कुआं ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जाना जाता है। राजस्थान के इतिहास में इस कुएं को जलमहल के नाम से जाना जाता है। रियासतकालीन यह कुआं आसपास के गांवों के लिए जीवन रेखा था। इसके अलावा आसपास में कोई कुआं नहीं था, जिससे पानी उपलब्ध हो सके। आजादी के बाद नए कुएं, ट्यूबवैल व पानी के वैकल्पिक स्रोत होने के कारण इस कुएं की महत्ता कम हो गई और इसकी उपेक्षा होने लगी। ऐसे में इस पर कलात्मक संगमरमर की मूर्तियां व पत्थर गायब भी होने लगे। स्थानीय स्तर पर लोग इस कुएं के संरक्षण के लिए बार-बार आवाज उठाते रहे है, लेकिन कुआं आज भी उपेक्षा का शिकार बना हुआ है।
● संरक्षण की जरूरत : जलापूर्ति बंद होने के बाद सुरक्षा के मध्य नजर तत्कालीन सरपंच ने सन् 2000 में चारदीवारी का निर्माण करवाया। लेकिन कुआं अभी भी खुला है। ग्रामीण इसकी चार दीवारी के अंदर कचरा डाल रहे है। कभी जीवन रखा बना यह कुआं आज उपेक्षा के कारण कचरा पात्र बन गया है। पूरा कुआ संगमरमर से बना हुआ है। संरक्षण नहीं होने की वजह से अब इसकी स्थिति जर्जर हो रही है। वहीं कई असामाजिक तत्व इस कुएं से संगमरमर उखाड़ भी रहे है। हर बार चुनावों के दौरान इस कुएं के संरक्षण को राजनैतिक मुद्दा बनाया जाता है। लेकिन हकीकत में कुछ भी नहीं हो रहा। कुआं खुला होने की वजह से कई पशु इसमें गिरकर मर चुके है। अस्थाई तौर पर चद्दरें डालकर ऊपर से बंद किया हुआ है। लेकिन इसके बावजूद इसमें कई जानवर गिर चुके है।
बाटाडू. ऐतिहासिक कुएं पर बनी विशाल गरुड़ की मूर्ति।
● इसलिए ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है यह कुआं
बाटाडू मुख्यालय पर स्थित यह कुआं 60 फीट लंबा, 35 फीट चौड़ा, 6 फीट ऊंचा व 80 फीट गहरा है। कुएं की उत्तर दिशा में एक बड़ा कुंड बना है, जिसकी गहराई 5 फीट है। इस कुंड के बीच में एक मकराना निर्मित पत्थर के स्टैंड के ऊपर बड़े आकार में संगमरमर की गरुड़ प्रतिमा बनी हुई है। जो कुएं का मुख्य आकर्षक है। इस कुएं पर जाने के लिए एक मुख्य द्वार तथा एक निकासी द्वार है। इस दोनों द्वार पर दो सिंह प्रतिमाएं लगी हुई है। इसके चारों ओर श्लोकों के साथ ही कई राजा-महाराजाओं और देवी-देवताओं की कला का वर्णन किया गया है। इसके साथ ही यहां पर संस्कृत में उत्कीर्ण श्लोकों में गाय की महिमा का वर्णन किया हुआ है। सन् 1947 के समय आसपास के 40-50 किलोमीटर परिधि में यह एक मात्र कुआं होने के कारण एक दर्जन से भी अधिक गांवों बाटाडू, लुनाड़ा, खींपसर , झाख, मौखाब, उंडू, काश्मीर, पौशाल, भीमडा, कोलू, कवास, छितर का पार, कानोड़, सवाऊ सहित कई गांवों के लोगों के लिए यह एक मात्र पेयजल स्रोत था।
बाटाडू. ऐतिहासिक कुएं की संगमरमर से बनी दीवार पर उत्कीर्ण कलात्मक मूर्तियां।
● सिणधरी रावल ने करवाया था निर्माण
सन् 1947 के काल में मारवाड़ क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा। उस दौरान यहां के लोग रोजी रोटी की तलाश में बाहर जाने के लिए मजबूर हुए और दूर दूर तक कहीं पीने का पानी उपलब्ध नहीं था। ऐसी स्थिति को देखते हुए सिणधरी रावल गुलाबसिंह ने इस कुएं का निर्माण करवाया था। उस समय आसपास के कई गांवों के बीच में यह एकमात्र कुआं था। चौबीस घंटे इस पर पानी के लिए बारी लगी रहती थी।
.
.
.
.
.
.
More inqury...................
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
You can follow me on :-
Common Yaatri Instagram : instagram.com/....
Common Yaatri Facebook Page : www.facebook.c...
Bhavesh Jangid Instagram : / bhaveshjang. .
Bhavesh Jangid Facebook : / bhaveshjangid87
Common Yaatri Twitter : twitter.com/Co....
Негізгі бет रेगिस्तान का जलमहल ll बाटाडू का कुआं ll Batadu ka kua vlog
Пікірлер: 29