सिद्धांत सार :
विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु एवं काशी विद्वत परिषत् द्वारा जगद्गुरूत्तम की उपाधि से विभूषित श्री कृपालु जी महाराज को 'सनातनवैदिकधर्मप्रतिष्ठापन सत्सम्प्रदाय परमाचार्य' की उपाधि से भी अलंकृत किया गया है। इस दृष्टि से श्री महाराज जी के श्रीमुख से निकले दिव्य श्रीवचन ही वास्तविक सनातन वैदिक धर्म के उद्घोषक हैं। श्री महाराज जी ने हम कलियुगी जीवों के कल्याणार्थ समस्त वेद शास्त्रों का सार अपने दिव्य प्रवचनों में अत्यंत सरल एवं रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। इस वीडियो में 'ब्रह्म जीव माया' शीर्षक प्रवचन श्रृंखला में प्रकटित श्री महाराज जी के अलौकिक तत्त्वज्ञान के अति विशिष्ट अंश प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
"जितनी देर में गाय दुही जाती है, थोड़ी देर को वो (शुकदेव परमहंस) किसी गृहस्थी के मकान पर खड़े होते थे। चौबीस घण्टे में एक बार। खाने को कुछ मिल जाय शरीर के लिये, बस। वो इतनी बड़ी भागवत सुनने के लिये कैसे बैठे रहे? तो सूत जी ने जवाब दिया-
आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।
कुर्वन्त्यहैतुकीं भक्तिमित्थम्भूतगुणो हरि:॥
(भागवत, 1.7.10)
जो परिपूर्ण हो जाते हैं आत्माराम निर्ग्रन्थ अर्थात् जिनकी माया समाप्त हो चुकी है, वे भी श्रीकृष्ण की भक्ति में डूब जाते हैं। बरबस। बरबस। जैसे संसार में कोई गरीब गुड़ खा रहा हो और सामने रसगुल्ला खाता हुआ कोई दिखाई पड़े तो गुड़ नहीं अच्छा लगता। वो होता अगर हमको भी मिलता वो रसगुल्ला।"
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Негізгі бет Музыка श्रीकृष्ण के एक ही गुण ने शुकदेव को बरबस खींच लिया
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