हमारे देव और अवतार हमारी सुबुद्धि की आलोचना के शिकार ही नहीं बल्कि
हमारी कुबुद्धि की आलोचना के शिकार हुए।
भई! आलोचना तो दोनों ही कर सकते हैं
जन्मसिद्ध बौद्धिक अधिकार जो है
और, सनातन में सबका स्वागत है
धर्मशास्त्र के अपने नियम भी है पात्रता के
फिलहाल उसकी धज्जियां उड़ाते हुए
कलुषित मानसिकता अपने सुझाव/सुधार भी
इसलिए जारी कर देती है
क्यूंकि यहाँ सुधार होता है, सुझाव होता है
शास्त्रार्थ होता है , मंत्रणा होती है
और गजब है , देखिये !
धर्म की ज़मीं पे फतवा जारी नहीं होता
बशर्ते ''धर्म की चिड़िया'' चौंके नहीं।
अगर चौंक गयी तो दाना खिलाना कठिन है
धर्म की फुलवाड़ी से फूल नोचते
सब उसके अपने बच्चे है
मां की तरह वास्तल्य लुटाती
#धर्म की छाती दूध पिलाती
संस्कार दे पोषित करती
व्यक्तित्व का जामा देती
बाकि सब माफ़ करती है
मुक्ति का मार्ग दिखाती
विष प्रभाव से मुक्त करती
#अमृत मार्ग को अग्रसर करती
तुम इसको कैसे धोखा दे सकते हो
धर्म नहीं , देश भी तुम्हारी माता है
जन्म से लेकर म्रत्यु तक जीवन
और क्या चाहिए !
मैंने सुना है...
'वो''
मुस्कराते हुए कह रहे थे
#कृष्ण की जब सोलह हजार रानियाँ
तो हमारी चार क्यों नहीं ?
त्वाड्डा टॉमी टॉमी, साड्डा टॉमी कुत्ता
कुछ ऐसे जुमले भी गढ़ रहे थे
ऐसा मैं नहीं.... वो कह रहे थे
सोचा समझा ही दू
उन्हें नहीं तो किसी और को समझ आ जाये
कितना फर्क है सोच में ! है न !
१६ हजार रानियों को सम्मान प्रश्रय देना
मात्र राजपुरुष श्री कृष्ण कर सकते है,
जो १६ हजार रानियों के संरक्षण को
कामी दृष्टि से देखते है,
चार क्या एक को भी सम्मान नहीं दे पाते ..
पर; ये भी सच बात है किसी की बात को
समझने के लिए उसके स्तर को भी छूना पड़ता है
कहाँ एक मूल में अटका कहाँ ज्ञानी के सहस्त्र की धार
कोई मेल
नहीं!
Epic Story:
हमारे नायक श्री कृष्ण के बारे में जानते है सोलह हजार एक सौ रानियों का सच , नरकासुर नामके मलेछ प्रवृति के राक्षस ने बलात इनका अपहरण किया और अपने महल में रानी ( ही कहेंगे वरना अपहरण में जीती स्त्रियां तो मालगनीमत है दासी से बदतर ) बनाया तो जब अत्याचार की बात श्री कृष्ण तक गयी तो पहले उन्होंने जा उसे समझने की चेष्टा की फिर युद्ध क्र उसका संहार किया और उन रानियों को सम्मान दिया। हमारे नायक हमारी प्रेरणा आज भी ५,२०० साल बाद भी इनके सनातन धर्म की शक्ति हमें प्रेरणा देती है।
Негізгі бет श्री कृष्ण -''कृष्ण'' एक युगपुरुष
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