Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281
श्री कृष्णा जन्माष्टमी के शुभ महोत्सव पर
परम पूज्य श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1395))
(श्री गीता ज्ञान यज्ञ )
श्री गीता जी (भाग -१)
धुन :
हरे राम हरे राम ,राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
आज गीताजी का पाठ आरंभ होता है । आप सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूं, शुभ एवं मंगलकामनाएं ।
ना जाने कितने ही गीता जी के पाठ हम कर चुके हैं, सुन चुके हैं ।
ना जाने कितने ही रामायण जी के पाठ हम कर चुके हैं, सुन चुके हैं ।
ना जाने कितने ही अमृतवाणी के पाठ हम कर चुके हैं, सुन चुके हैं ।
भक्ति प्रकाश के पाठ भी ना जाने कितने कर चुके हैं, सुन चुके हैं ।
पार्थ ने एक ही बार श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ सुना । हम तो बहुत बार सुन चुके हैं, बहुत बार कर चुके हैं । क्या जैसा परिवर्तन अर्जुन के जीवन में आया, क्या इतने पाठ करने के बावजूद हमारे जीवनों में भी अंतर आ रहा है कि नहीं ? क्या इसे देखना हमारा कर्त्तव्य नहीं है कि मात्र हमें पढ़ना ही नही हैं, हमें पाठ करना ही है ।
अर्जुन ने किन परिस्थितियों में श्री गीताजी का पाठ सुना है। कितना tense है अर्जुन, युद्ध क्षेत्र में खड़ा हुआ । आपकी किसी साधारण से मामूली तू तू मैं मैं होती है तो ब्लड प्रेशर कितना हाई हो जाता है ? सोचें, अर्जुन जिस परिस्थिति में खड़ा है उसकी अपनी निजी स्थिति कैसी होगी ? ऐसी स्थिति में उसने भगवान् द्वारा दिया हुआ ज्ञान श्रवण किया है । स्वामी जी महाराज ने आज श्रीमद्भगवद्गीता के महात्म्य के अंतर्गत अंतिम पंक्तियों में कहा है -
गीता जी का महत्व तभी मालूम होगा, जब गीता ज्ञान को अपने जीवन में बसाया जाएगा, इन्हें अपने कर्मों में उतारा जाएगा तो आपको वही लाभ होंगे जो अर्जुन को हुए थे । अन्यथा तो पन्ने पलटने की बात है। अमृतवाणी के लिए भी, भक्ति प्रकाश के लिए भी, ना जाने कितने सुंदरकांड के पाठ हम कर चुके हैं लेकिन हमारा purpose अपने आप को बदलने का purpose
नहीं । ना अमृतवाणी का पाठ करके, ना भक्ति प्रकाश का पाठ करके, और ना ही गीताजी का पाठ करके । हमारा purpose तो बहुत अलग हुआ करता है । जिसका सभी को पता भी नहीं, कि क्या कर रहे हैं? क्या purpose है ?
अर्जुन को क्या हुआ है ? अर्जुन मोहजन्य, मोह से पैदा हुई करुणा के कारण विषाद में चला गया है । यहीं से पहले अध्याय का आरंभ होता है । पहले अध्याय में आज पूरा हुआ होता तो आपको पता लगा होता कि अर्जुन किस दुर्दशा को प्राप्त हो गया है । सब कुछ छोड़ छाड़ कर, अपना गांडीव धनुष, बाण इत्यादि, छोड़-छाड़ कर कहीं फेंक कर रथ के पिछले भाग में बैठ जाता है, मुंह लटका कर ।
भगवान् के सामने घोषणा कर लेता है,
मैं एक साधु का जीवन व्यतीत करूंगा, युद्ध नहीं करूंगा । मैं अपने पितामह, अपने गुरुजनों को मारूंगा नहीं । उदास हो गया है, सब कुछ छोड़ दिया है उसने । उसका कर्त्तव्य क्या है ? इस वक्त उसे सुध नहीं है। इतने गहरे विषाद में वह चला गया है, शोक में चला गया है । भगवान् उसकी दुर्दशा को देखकर तो उसको शाबाशी तो नहीं देते ।
दूसरे अध्याय का शुभारंभ ही भगवान् की डांट से होता है । भगवान् श्री गुरु महाराज की पदवी ग्रहण करते हैं, स्वीकार करते हैं, जब अर्जुन अपने आपको शिष्य स्वीकार करता है। जब अर्जुन अपने आपको विषाद सहित, ऐसा नहीं गुरु महाराज कह रहे कि पहले आप स्वस्थ होकर मेरे पास आओ। नहीं, अर्जुन ऐसा करने में सक्षम नहीं है । इतना गहरा उसे धक्का आघात लगा हुआ है, इतना शोक ग्रस्त है वह कि इससे बाहर नहीं आ सकता । अतएव जैसी उसकी स्थिति है उसे छिपाकर नहीं, वैसी ही स्थिति में अपने आप को परमात्मा को सौंप
देता है ।
अर्जुन ने जो अच्छी बातें करी हैं, वह हम सबके सीखने योग्य, जीवन में उतारने योग्य, तभी हमें अर्जुन जैसा लाभ प्राप्त हो
सकेगा । अर्जुन ने अपने विषाद को परमात्मा के साथ जोड़ दिया है और भगवान् ने उसे विषाद योग बना दिया है ।
Never mind आप विषाद भी मेरे साथ जोड़ो तो मैं उसे योग बना दूंगा । जोड़ो । मैं आपको विषाद रहित होकर अपने पास आने के लिए नहीं कहता । मैं जानता हूं एक गुरु की भूमिका, एक डॉक्टर की भूमिका है और डॉक्टर के पास कोई तंदुरुस्त नहीं जाता, रोगी जाएगा । जो तंदुरुस्त है वह डॉक्टर के पास क्या करने जाएगा ? वह हॉस्पिटल क्यों जाएगा ? उसे क्या जरूरत है जाने की ? मत ऐसा चाहिएगा पहले हम अच्छे हो जाएं तो फिर परमात्मा की चरण शरण में जाएंगे, बहुत देर हो जाएगी ।
समुद्र की लहरें उठनी बंद हो जाएंगी तब हम स्नान करेंगे तो जन्म जन्मांतर, युग युगांतर, आप कभी स्नान नहीं कर पाओगे । इसलिए समुद्र जैसा है, आप वैसे ही उसमें कूदिएगा तो आप स्नान करके निकलिएगा । अर्जुन ने अपने जीवन रथ की डोरी भगवान् को सौंप दी है । जो जो बातें अर्जुन ने करी हैं इस लाभ की प्राप्ति के लिए, मेहरबानी करके उन्हें ध्यान दीजिएगा ।
एक तो उसने अब शिष्यत्व स्वीकार कर लिया है । मैं आपका शिष्य, आप मेरे गुरु महाराज । मात्र इतना ही नहीं मैं अपने आप को, आपके श्री चरणो में प्रपन्न: समर्पित करता हूं । मेरे जीवन के रथ की बागडोर आप संभालिएगा, आप सारथी बनिएगा। भगवान् बने हैं । नहीं सोचा कि यह कितना छोटा काम मुझे दे रहा है करने के लिए ।
कहां भगवान्, कहां मैं और कहां एक सारथी रथ हांकने वाला । लेकिन चूंकि अर्जुन समर्पित हो चुका हुआ है और समर्पित के लिए हर कुछ करना मेरा वर्ध है, मेरा प्रण है इसलिए अर्जुन ! मैं तेरे जीवन रथ की बागडोर संभालने के लिए तैयार हूं ।
तीर चलेंगे, मेरे से होते हुए तेरे पास जाएंगे। मुझे पहले लगेंगे । मैं उन्हें रास्ता दूंगा तो तीर तुम्हें लगेगा । मैं रास्ता नहीं दूंगा तो तीर तेरे तक पहुंचेगा नहीं । यह गुरु की भूमिका है । आगे बहुत कुछ होता है साधक जनो ! आप पढ़ेंगे अंत में क्या मिलता है । पार्थ गीता पाठ से पहले क्या था ?
Негізгі бет *श्री कृष्णा जन्माष्टमी के शुभ महोत्सव पर *श्री गीता जी (भाग -१)*
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