राम बिन तन की ताप न जाई, जल मे अग्नि उठी अधिकाई ।
राम-नाम के सुमिरण के बिना मन की ताप नहीं जाती। ताप इतनी है कि जल में भी अग्नि लग जाती है।
तुम्ह जलनिधि मैं जलकर मीना, जल में रही जलही बिन पीना।
हे भगवान! आप विशाल सागर हो और मैं इसमें एक छोटी सी मछली हूँ। सागर में रहकर भी जल की एक बूंद भी नहीं पी पा रही हूँ।
तुम्ह पिंजरा मैं सुवना तोरा, दरसन देहु भाग बड़ मोरा ।
आप पिंजरा हो और इसमें मैं आपका तोता हूँ। आप मुझे दर्शन दीजिए मेरे बड़े भाग होंगे।
तुम्ह सतगुरू मैं नौतम चेला, कहै कबीर राम रमु अकेला ।
आप मेरे गुरु हैं और मैं आपका चेला हूँ। संत कबीर साहब कहते हैं वो राम में रमे हैं।
~ संत कबीरदास
Негізгі бет राम बिन तन की ताप न जाई । कबीर साहब
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