नल - नील की शक्ति का रहस्य
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नल - नील की शक्ति और मुनींद्र ऋषि की कथा | Sant Rampal Ji 2D Cartoon Moral Story | Dharti Upar Swarg,
रामसेतु का क्या रहस्य है?, कैसे तैरे समुंद्र पर पत्थर, कैसे बना समुंद्र पर पुल, राम का पुल कैसे बना था,
नल - नील की शक्ति और रामसेतु का रहस्य 2D Animation,
रामसेतु का अनसुना रहस्य 2D Cartoon Story | मुनींद्र ऋषि और नल - नील की कथा | Sant Rampal Ji Maharaj
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. भाग 1 तक आपने देखा कि कैसे रामचंद्र जी की वानर सेना के दो सैनिक नल तथा नील को जल पर पत्थर तैराने की शक्ति मिली।
अब देखिए की क्या उनकी इसी शक्ति से समुन्द्र पर रामसेतु बना या कोई और रहस्य था?
2. कुछ दिनों बाद जब हनुमान जी ने माता सीता का पता लगा लिया था कि वो लंका में रावण के पास है तो रामचंद्र जी लंका जाने के लिए योजना बनाने लगे। रामचंद्र जी ने 3 दिन तक घुटनो तक के पानी मे समुन्द्र में समुन्द्र देवता से रास्ता देने की याचना की लेकिन कोई जवाब नही मिला। रामचंद्र जी क्रोधित हुए
R: लक्ष्मण, मेरा अग्नि बाण लाओ, ये लातों के पूत बातों से नही मानेंगे। अभिमानी रावण का संग पाकर यही समुन्द्र भी अभिमानी हो गया है।
तब समुन्द्र देवता निकल कर आया
S: ऐसा मत करो प्रभु। इससे न जाने कितने प्राणी व्यर्थ में मारे जाएंगे।
ऐसा उपाय करो कि सांप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे।
मेरे पास एक उपाय है। आपकी सेना में दो ऐसे सैनिक है जिनके हाथों में उनके गुरुदेव द्वारा प्रदान की हुई एसी शक्ति है कि वे मेरे पर पत्थर भी तैरा सकते है। ऐसे आप मुझ पर पत्थर से पुल बना कर आसानी से पार कर सकते हो।
R: अच्छा, कौन है वो सुरवीर।
S: भगवन, उनका नाम नल तथा नील है। उनके गुरुदेव मुनीन्द्र ऋषि जी की रजा से उनके पास यह शक्ति है।
4. रामचंद्र जी ने नल नील को बुलाया।
R: क्या समुन्द्र देवता सही कह रहे हैं? आपमे कोई ऐसी शक्ति है जो पत्थर भी तैरा दे?
N: हाँ महाराज, हमारे हाथों में ऐसी शक्ति है।
R: अच्छा? तो ठीक है, आप मुझे परीक्षण करके दिखाइए।
परिक्षण देने पर नल नील के मन में अहंकार था कि आज हमारी खूब महिमा ओर प्रसिद्धि हो जाएगी। इस महिमा की भूख में उन्होंने अपने गुरुदेव मुनीन्द्र ऋषि जी को नमन नही किया और समुन्द्र पर पत्थर रखा।
पत्थर रखते ही डूब गया। फिर नील ने पत्थर रखा तो वह भी डूब गया। उन्होंने दो तीन बार पत्थर रख कर देखा तो वे सब डूब गए।
S: बेटा नल नील। आपने अपने गुरुदेव को प्रणाम नही किया भाई। शायद इसी वजह से पत्थर नही तेर रहे।
नल नील शर्मिंदा हो गए और अपने गुरुदेव को याद करने लगे।
5. इतने में स्वयं मुनीन्द्र ऋषि जी वहाँ चले आये।
N: हमारे गुरुदेव आ गए हैं।
नल नील ने तथा स्वयं रामचंद्र जी ने ऋषि मुनीन्द्र जी को प्रणाम किया।
रामचंद्र जी ने अपनी सारी समस्या बताई
R: ऋषि जी अब आपके भक्तो के पास भी वह शक्ति नही रही। कृपया दया करो महात्मा जी।
G: इनके हाथो में वह शक्ति रहेगी भी नही। क्योकि इनमे अहंकार आ गया था, इसलिए इनके हाथों से वह शक्ति अब समाप्त हो गई हैं।
R: फिर हमारा लंका जाना कैसे होगा भगवन?
G: आपको घबराने की जरूरत नही है। मैंने इसका समाधान कर दिया है। इस निकट वाले पर्वत में ऐसी शक्ति प्रवेश की है कि इसके पत्थर समुन्द्र में नही डूबेंगे। इनसे आप आसानी से पुल बना सकोगे और लंका के लिए जा सकते हो।
R: भाई हनुमान, जरा उस पहाड़ से पत्थर लाकर परीक्षण करवाओ भाई।
H: अवश्य भगवन, में अभी लाता हुँ।
ये महात्मा तो वही लगता है जो मुझे लंका से आते समय उस बगीचे में मिला था? जरूर ये ऋषि जी समाधान कर देंगे। ये तो बड़े शक्तिशाली है।
हनुमान जी ने पत्थर समुन्द्र में फेंक दिया। एक भारी भरकम पत्थर आसानी से समुन्द्र पर तेर रहा था।
सभी ने परमात्मा मुनींद्र ऋषि जी के जयकारे लगाए, और धन्यवाद दिया।
रामचंद्र जी ने परमेश्वर का सुक्रिया अदा किया और परमेश्वर मुनीन्द्र जी वहां से चले गए।
इस प्रकार समुन्द्र पर पत्थर तैरे ओर रामसेतु बना। आज तक यह भ्रांति फैली हुई है की कोई कहता है कि पत्थरो पर राम नाम लिखने से पत्थर तैरे थे, कोई कहता है कि नल नील के पास शक्ति थी, तो कोई कुछ और कहता है। नल नील का महत्वपूर्ण योगदान ये था कि दोनों एक अच्छे शिल्पकार थे, ओर उन्होंने ही पुल को बनावट दी थी।
जबकि पत्थर तैरने की असली वजह यह है जो आपको बताई गई।
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