ईरान में बचपन में हुसैन को यौन उत्पीड़न और बलात्कार का सामना करना पड़ा था. फिल्म निर्माता हुसैन शिया इस्लाम के धार्मिक केंद्र क़ोम में बड़े हुए. अपनी पत्नी इलाहे के साथ मिलकर, उन्होंने अपनी फिल्म में उस सदमे का सामना करने की कोशिश की है.
बाहरी तौर पर, हुसैन एक खुशमिजाज़ इंसान हैं, लेकिन अंदर ही अंदर वह बचपन के सदमे का दर्द महसूस कर रहे हैं. जब वह अपनी पत्नी को बचपन में हुए यौन शोषण के बारे में बताते हैं, तो वह उन्हें सदमे से उबरने में मदद करने का फैसला करती हैं. हुसैन और इलाहे अपने अनुभव के बारे में एक फिल्म बनाकर सार्वजनिक रूप से सामने आने का साहसी कदम उठाते हैं. हुसैन और इलाहे दोनों ही क़ोम से हैं, जो शिया इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण शहर है.
लिंग भेद, नैतिक पुलिस और मानवाधिकार का उल्लंघन यहाँ रोज़मर्रा की ज़िंदगी की हक़ीक़त हैं. शादी और परिवार पवित्र माने जाते हैं, और बच्चे पैदा करना स्वाभाविक बात है. हुसैन को यह सब गलत लगता है. लेकिन समाज में इसके अनुरूप ढलने का दबाव बहुत ज़्यादा है. एक चिकित्सक की मदद से, उनकी पत्नी आखिरकार उन्हें अपने माता-पिता से बात करने और अपनी परेशानियाँ बताने के लिए मना लेती हैं. धर्मशासित ईरान में यह एक साहसिक काम है.
हुसैन और इलाहे की कहानी "मर्दों को मजबूत होना चाहिए" जैसी रूढ़ियों को खारिज करती है और दिखाती है कि कोई भी समाज यौन सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकता है. यौन उत्पीड़न और बलात्कार दुनिया भर में वर्जित विषय हैं, और खासकर तब और भी ज़्यादा जब बच्चों और पुरुषों की बात आती है. फिल्म हिंसा के ऐसे अनुभवों के बाद चुप्पी तोड़ने के मकसद वाले एक सफर का दस्तावेज है.
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Негізгі бет ईरानी बचपन का सदमा [Trauma of an Iranian childhood]। DW Documentary हिन्दी
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