बहुत ही अच्छा लग रहा है,,,ऐसे ही हो समाज़ के बच्चो को प्रेरित करे हो भाषा पढ़ने के लिए,,,बहूत बहुत धन्यवाद । एक बाद , हो वारङ चिति से लिख सकता हूँ पर ज्यादातर हिन्दी और अंग्रेजी मध्यम से है इसलिए मैं देवनागरी लिपि में कुछ कहना चाह रहा हूँ । हाल फिलहाल में ही देखे कैसे पूर्वी सिंहभूम में हो भाषा का पद जीरो और बंगाल का बंगाली भाषा के लिए 81 पद ।,,,मैं बंगाल में हूँ और देखा है कि बंगाली कैसे बंगाली भाषा खुद बोलते हैं और दुसरे को भी प्रेरित करते हैं, या बोलने , सीखने के लिए दबाव देते हैं । चाहे बाजार हो , चाहे विद्यालय हो , चाहे महाविद्यालय हो, चाहे आफिस हो या बंगाली बंगाली आपस में बंगाली में ही बात करते हैं । ऐसा नही है कि बंगाली केवल बंगाली ही पढे होते है । पढाई चाहे हिन्दी हो , या अंग्रेजी मध्यम हो वे जमीनी स्तर पर बाजार, विद्यालय आफिस में बंगाली से ही बात करते हैं और अपने आप को गर्व करते है कि हम बंगाली है और हमे अपने मातृभाषा बोलने में कोई शर्म महसूस नही है । चाहे कितना भी बड़ा अधिकारी क्यो न हो । लेकिन हो लोगों मे ऐसा कम है ज्यादातर पढे लिखे हो लोग , बच्चे जो हिन्दी, अंग्रेजी मध्यम से है उनका का तो अलग लेबल का क्रेज़ रहता है कि जैसे कसम खा रखा है कि हो भाषा बोले ही नहीं ।आपस में भी हो भाषा बोलने मे शर्म करते है कि हमें यह जान न जाये हम हो समाज़ के लोग है कि ये इतना पढ़े लिखे हो कर भी हो भाषा बोलने रहे हैं । हम हो लोग बाजार में भी दुकानदार से हो भाषा में नही मांगते है ।हम भूल जाते है कि हम हो समाज़ के लोग है ।।।। दुकानदार को तो मजबूर कर देना चाहिए कि हम यदि आपके दुकान से खरीददारी नहीं करेंगे तो आपका संसार नहीं चलेगा ।ठीक इसके विपरीत बंगाली झारखण्ड के किसी कोने में क्यो न हो बंगाली भाषा में ही बोल के खरीददारी करने की कोशिश करते हैं और दुकानदार का भी हो जाता या मजबूर है कि बंगाली भाषा सीखना ही है । ।।।।बंगाली लोग जमीनी स्तर पर भाषा को मजबूत करते है इसके लिए उन्हे अंदोलन करने की आवश्यकता ही नही पढ़ती है और एक हो समाज़ के लोग हो भाषा के लिए अंदोलन पर अंदोलन कर रहे हैं, अंदोलन करते जा रहे हैं फिर भी हमारे हो भाषा के साथ भेदभाव हो रहा हैं और सरकार जिसकी भी हो , हो भाषा के साथ भेदभाव हो रहा है,,,अब से सोच बना ले पढाई चाहे हिन्दी हो, अंग्रेजी मध्यम हो ,लेकिन बाजार, आफिस, विद्यालय, महासभा में अपनो से और दूसरों को भी हो भाषा बोलने के मजबूर करे।,,,झारखण्ड में हो भाषा नही बोलेगे तो क्या बंगाल में बोलेगे। झारखण्ड में जब कोई औकात नहीं हो तो कया अन्य राज्य में सम्मान मिलेगा, कभी नही।।।।। और आठवीं अनुसूची में शामिल करने का सपना भी सपना ही होगा जमीनी स्तर पर नहीं है । लेकिन हो भाषा गाँव तक ही सीमित न हो ।।।।।। गाँव तक ही सीमित न हो ।।।।।
@RoyaAngaria
2 ай бұрын
Johar guru
@mangalsinghbarjo4256
2 ай бұрын
मर दादा दाई को like comments सोबेन हो को तह बेटान का
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