रावण के अधिष्ठाता हैं यहां! शिव धाम, बैजनाथ! #youtube #viral
Discription - हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिले के बैजनाथ उपमंडल में स्थित है ऐतिहासिक शिव मंदिर जो कि विश्व भर के शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है। यह मंदिर पठानकोट-मंडी नैशनल हाइवे पर स्थित है। बैजनाथ की दूरी मंडी से करीब 75 किमी और पालमपुर से करीब 18 किमी तथा गग्गल एअरपोर्ट (कांगड़ा) से करीब 54 किमी है।यहां के लिए दिल्ली, चंडीगढ़, पठानकोट व मनाली से सीधी बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं। हवाई जहाज से आने वाले श्रद्धालु गग्गल हवाई अड्डे पर उतरने के बाद टैक्सी द्वारा पहुंच सकते हैं।
विश्व भर के शिव भक्त यहां भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आते हैं। इस मंदिर से धौलाधार की वादियों का सौंदर्य देखते ही बनता है। यह मंदिर अपनी पौराणिक कथाओं, वास्तुकला और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं और उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कार्य ‘आहुका’ और ‘ममुक’ नाम के दो व्यापारी भाइयों ने 1204 ई. में किया था।
जनश्रुतियों के अनुसार लंका का राजा रावण शिव जी का परम भक्त था।
रावण ने विश्व विजयी होने के उद्देश्य से भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। इस तपस्या से भगवान शिव को अभिभूत करने के लिए रावण अपना सिर हवन कुंड में समर्पित करने वाला था कि उसी समय भगवान शिव वहां प्रकट हुए और रावण से वर मांगने के लिए कहा।
रावण ने भगवान शिव से साथ चलने की प्रार्थना की। कहते हैं कि रावण के आग्रह पर भगवान शिव ने लिंग का रूप धारण कर लिया और रावण को उसे ले जाने को कहा।
साथ ही शिवजी ने शर्त रख दी कि वह उन्हें लंका पहुंचने तक शिवलिंग को कहीं भी रास्ते में भूमि पर नहीं रखेगा।
भगवान शिव ने रावण से कहा कि अगर यह शिवलिंग को रास्ते में कही रख देगा तो वह उसी स्थान पर स्थापित हो जाएगा और उसका विश्व विजयी होने का उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो पाएगा। देवताओं ने रावण के इस निमित्त से घबराकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
श्री विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करते हुए किसान का रूप धारण किया और मंदिर स्थल के समीप खेतों में काम करने लगे।
रास्ते में रावण किसान को काम करते देख यहां पर विश्राम के लिए रूका और
रावण ने शिवलिंग उस किसान को पकड़ाते हुए उससे शिवलिंग को भूमि पर न रखने का आग्रह किया।
लेकिन किसान ने कुछ समय के पश्चात शिवलिंग को वहीं रख दिया।
इस तरह शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गया और रावण का विश्व विजेता बनने का सपना चकनाचूर हो गया।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बैजनाथ में दशहरा नहीं मनाया जाता क्योंकि रावण शिव का प्रिय भक्त था। कहते हैं कि एक बार कुछ स्थानीय लोगों ने दशहरे के दौरान रावण का पुतला जलाया था और इसके बाद आयोजकों तथा उनके परिवारों को अनिष्ट झेलना पड़ा था उसके बाद किसी ने भी यहां दशहरा मनाने की कोशिश नहीं की।
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