Rajgir Malmas Mela
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बिहार में स्थित राजगीर, राजधानी पटना से लगभग 60 किमी दक्षिण-पूर्व में है। यह शहर बहुत पुराना है और इसका इतिहास ईसा पूर्व 5वीं शताब्दी के आसपास मगध के राजाओं के समय से मिलता है। आज यह अपने किलों और चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाओं के अलावा बौद्ध खंडहरों और जैन और हिंदू मंदिरों के साथ-साथ मुस्लिम कब्रों के लिए भी जाना जाता है।
यह कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, वसुमतिपुर, वृहद्रथपुर, गिरिब्रज और कुशग्रपुर के नाम से भी प्रसिद्ध रहे राजगृह को आजकल राजगीर के नाम से जाना जाता है। पौराणिक साहित्य के अनुसार राजगीर बह्मा की पवित्र यज्ञ भूमि, संस्कृति और वैभव का केन्द्र
भगवान बुद्ध की साधनाभूमि राजगीर में ही है। इसका ज़िक्र ऋगवेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय उपनिषद, वायु पुराण, महाभारत, वाल्मीकि रामायण आदि में आता है। जैनग्रंथ विविध तीर्थकल्प के अनुसार राजगीर जरासंध, श्रेणिक, बिम्बसार, कनिक आदि प्रसिद्ध शासकों का निवास स्थान था। जरासंध ने यहीं श्रीकृष्ण को हराकर मथुरा से द्वारिका जाने को विवश किया था।
18 जुलाई से मलमास की शुरुआत हो चुकी है और 16 अगस्त को इसका समापन होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मलमास की अवधि में बिहार के राजगीर में सनातन धर्म के सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं निवास करते हैं। राजगीर में भगवान विष्णु की शालीग्राम के रूप में पूजा की जाती है। यहां पर ब्रह्मकुंड व सप्तधाराओं में स्नान का विशेष महत्व है। मलमास में कोई भी मांगलिक व शुभ कार्य का आयोजन नहीं किया जाता है। इस दौरान भगवान विष्णु का ध्यान व जप तप करने का अधिक फल मिलता है।
मलमास के दौरान जिनका निधन हो जाता है, उनका पिंडदान केवल राजगीर में ही होता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए यहां पिंडदान, तर्पण विधि और श्राद्ध कर्म वैतरणी नदी पर किए जाते हैं।
राजगीर की परंपरा के अनुसार, पुरुषोत्तम मास मेले के दौरान गाय की पूंछ पकड़कर वैतरणी नदी पार करने पर मोक्ष व स्वर्ग की प्राप्ति होती है और व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। वहीं जाने अनजाने में हुए पाप से मुक्ति के साथ-साथ सहस्त्र योनियों मे शामिल नीच योनियों से भी मुक्ति मिल जाती है।
पौराणिक वैतरणी नदी का इतिहास काफी गौरवमयी व समृद्धशाली रहा है। मलमास मेले के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु यहां गर्म कुंड के साथ साथ वैतरणी नदी में स्नान करते हैं। पुरोहित यहां एक माह तक गाय के बछड़ा को लेकर रहते हैं। राजगीर का धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ही महत्व है। राजगीर कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। साथ ही मौर्य साम्राज्य का उदय भी यहीं से हुआ था। राजगीर में वैतरणी नदी के अलावा 22 कुंड और 52 धाराएं भी हैं।
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