गुजरात के गिर सोमनाथ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर, बारह महाज्योतिर्लिंगों में से एक हैI ये वो मंदिर होते हैं, जो भगवान् शिव के प्रति भक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका उल्लेख हमें शिवपुराण में मिलता हैI वर्तमान मंदिर का ढांचा मारू-गुर्जर वास्तुकला शैली में निर्मित है, और ये दो-मंजिला हैI जटिल नक्काशी के साथ-साथ इसका मंडप ख्म्बेदार है, और इसमें 212 नक्काशीदार पैनल हैंI इसमें गर्भगृह, सभामंड़प और नृत्यमंडप है, जिसका शिखर 150 फीट ऊँचा हैI इस मंदिर से जुड़े कई महतवपूर्ण ऐतिहासिक पहलू हैं I आईये, आपको इनकी दिव्य यात्रा पर ले चलते हैंI
मूल रूप से सोमनाथ का अर्थ भगवन शिव हैI अनेक दंतकथाओं और प्राचीन ग्रन्थों ने सोमनाथ मंदिर को भगवान शिव से जोड़ा हैI वहीँ कई इतिहासकार इसको ‘प्रभास पट्टन’ से जोड़ते हैं, जहां पर हिरण, कपिल और सरस्वती नदियों का संगम होता हैI दिलचस्प बात ये है, कि ये वर्तमान में इस नाम का एक स्थान है, जो सोमनाथ मंदिर के समीप है और यहाँ पर त्रिवेणी महासंगम का भी आयोजन होता हैI हालांकि, सोमनाथ मंदिर का मूल निर्माण वर्ष आज भी अज्ञात है, इसका पुनर्निर्माण सातवीं शताब्दी में वल्लभी शासकों और नौवीं शताब्दी में प्रतिहार शासकों द्वारा किया गया थाI
सोमनाथ मंदिर उन चंद भारतीय मंदिरों में गिना जाता है, जिसका पुनर्निर्माण अनेक बार हुआ है! ग्यारहवीं शताब्दी की शुरुआत तक सोमनाथ मंदिर और इसके आसपास का इलाका प्रायद्वीपीय भारत के सबसे समृद्ध और धनी इलाकों में गिना जाता थाI मगर इसकी ख्याति पर आंच सन 1026 में तब आई, जब महमूद ग़ज़नी ने यहाँ हमला कियाI इसके साथ-साथ, उसने ना सिर्फ कत्लेआम किया, बल्कि बीस मिलियन दीनार के खजाने को इस मंदिर से अपने वतन ले गयाI इस मंदिर की भव्यता और इसमें मौजूद खज़ाने का उल्लेख हमें मशहूर विद्वान् और लेखक अल-बेरुनी के वृतांत से मिलता हैI वहीँ सोमनाथ मंदिर का चौथी बार पुनर्निर्माण राजा भोज द्वारा सन 1030 के दशक में हुआI मगर आसपास के क्षेत्र को यहाँ हुए नुक्सान का इसपर कोई प्रभाव नहीं हुआ और यहाँ व्यवसायिक गतिविधियाँ लगभग पांच शताब्दियों तक कायम रहींI मगर ये सिलसिला तब रुका, जब सन 1297 में खिलजी सुल्तानों, सन 1393 में तुगलक़ सुल्तानों और सन 1469 में गुजरात सुल्तानों ने सोमनाथ मंदिर को अनेक बार क्षतिग्रस्त किया, जिसके कारण यहाँ का व्यापार-कारोबार सूरत में स्थानांतरित हुआI सोलहवीं शताब्दी के अंत तक तीसरे मुग़ल बादशाह अकबर के शासनकाल के दौरान, सोमनाथ मंदिर की खोयी गरिमा एक बार फिर वापस आई, जिसके कारण ये एक बार एक प्रमुख तीर्थ-स्थल बनाI मगर ये सिलसिला सिर्फ एक शताब्दी तक ही सीमित रहा, क्यूंकि छठे मुग़ल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल के दौरान, ये मंदिर फिरसे क्षतिग्रस्त हुआI जिसके कारण, पूजास्थली को मजबूरन सोमनाथ के निकटवर्ती इलाके में स्थानांतरित किया गयाI अट्ठारहवीं शताब्दी एक अंत में, जब महारानी अहिल्याबाई होलकर ने सोमनाथ का रुख किया, तब उन्होंने अनेक मंदिरों और घाट के साथ-साथ वर्तमान सोमनाथ मंदिर के निकट एक मंदिर का निर्माण किया, जहां पर नुक्सान से बचने के लिए शिवलिंग को तहखाने में रखा गया थाI ये मंदिर आज भी यहाँ देखा सकता हैI
हालांकि अंग्रेजों के आने तक ये हमलों का सिलसिला पूरी तरह से रुक तो गया, मगर सोमनाथ मंदिर कई दशकों तक वीरान रहा, बावजूद इसके, कि ये कई भारतीय और ब्रिटिश इतिहासकारों और पुरावेत्ताओं के शोध का विषय ज़रूर बनाI
सन 1947 में भारत की स्वतंत्रता के दौरान, सोमनाथ मंदिर उस दौरान जूनागढ़ रियासत का हिस्सा थाI वहाँ के नवाब इस रियासत को पाकिस्तान का हिस्सा बना ही रहे थे, कि तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभाई पटेल और केन्द्रीय लोक सेवा मंत्री एन वी गाडगीळ के नेतृत्व में जूनागढ़ न सिर्फ वर्तमान गुजरात राज्य का हिस्सा बना, बल्कि इन दोनों नेताओं ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रण भी लियाI इस मुहीम के लिए महात्मा गाँधी ने इस बात पर अपना समर्थन दिया, कि इसके लिए पैसा आम जनता से लिया जायेगा और ना कि सरकार सेI
मगर गाँधी और पटेल के देहांत के बाद, गाडगीळ को साथ देने लिए मशहूर नेता कन्हैयालाल मानेक्लाल मुंशी सामने आये, जिन्होंने सोमनाथ मंदिर को भारत की समृद्ध धरोहर का प्रतीक मानाI इसके बाद, मई सन 1951 को तत्कालीन भारतीय राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के करकमलों द्वारा सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्मित ढाँचे का उद्घाटन हुआ, जहां उन्होंने ज्योतिर्लिंग प्रतिस्थापन में भी भाग लियाI
एक लोकप्रिय स्थान है,सोमनाथ मंदिर भारतीय सभ्यता और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुका हैI आज ये मंदिर हर काल को पार करके अनेक भारतीयों की आस्था और धार्मिकता का केंद्र हैI
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Негізгі бет सोमनाथ मंदिर: भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय I इतिहास के अनजाने पहलू
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