सामने आया सच। 2021 की डायरी में वसीयत पूरी नहीं दिखाई गई
सारी साध संगत को धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा।।
सभी सतगुरु की प्यारी रूह को मैं नरेंद्र पारीक साफ कर देना चाहता हूं 6 अगस्त, 9 अगस्त, 18,19,20,21 अगस्त को मेरे सपने में सतगुरु वकील साहब आये उन्हीं से बात हुई महात्मा वीरेंद्र 6 अगस्त को दिखे जरूर पर कोई बात नहीं हुई।।
मैंने डेरे से कोई नामदान नहीं लिया हुआ फिर सतगुरू की इतनी दात बख्शी वो मेरे प्रारब्ध का ही नतीजा है।। मेरे नाम से कोई महात्मा जी पर उंगली ना उठाये।।
मेरा निजी मत है कि महात्मा वीरेंद्र ही सतगुरु की गद्दी पाने का सच्चा हकदार है क्योंकि उनमें सादगी है,दीनता है ।।
वो चाहते तो जिस दिन पगड़ी मिली उसी दिन गद्दी पर बैठ सकते थे मगर उन्होनें सन्तो के सच्चा उत्तराधिकारी होने का सही दायित्व निभाते हुए सबको साथ लेकर चलने सारी जांच पूरी होने के बाद गद्दी संभालने की बात की है।। शांति सहमति दीनता सन्तो का गहना होती है और महात्मा वीरेन्द्र ने प्रशासन का साथ देकर और बाद में भी शांति का उपदेश देकर अपने आप को संत का सच्चा उत्तराधिकारी सिद्ध किया है।।
जो लोग गद्दी गद्दी चिल्ला रहे है वो केवल धन दौलत देख रहे है।। सन्तो में क्षमा भाव होती है निंदकों से प्रार्थना है कि अभी भी समय सतगुरु की शरण मे आकर अपना अपराधबोध कर ले और सिमरन में लग जाओ।।
क्योंकि संत कबीर ने अपनी वाणी में कहा था हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर। कहने का अर्थ है कि भगवान के रूठने पर गुरु की शरण रक्षा कर सकती है किंतु गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना संभव नहीं है।
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