सांसों में छिपा है ब्रह्मांड का रहस्य #meditation #universe
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नमस्कार दोस्तो,आज इस वीडियो में जानेंगे सांस, यानी आपके अंदर बाहर आती जाती ये हवा, जब तक ये अंदर बाहर हो रही है,तभी तक हम जीवित है, लेकिन इस हवा के रुकते ही आपके आसपास मौजूद, आपके अपने भी आपको मिट्टी कहते है, और थोड़े पढ़े लिखे लोग बॉडी कहते हैं। यानी आपका अस्तित्व, आपका नाम ये जब तक है,तब तक ये सांस चल रही है। तो ज्यादातर ध्यान विधियों में सांसों पर ध्यान रखने को क्यों कहा जाता है? जिसमें विपश्यना मेडिटेशन मुख्य है।
देखिये आपकी ये सांसे आपके इस भौतिक शरीर को ही नहीं चलाती,बल्कि इसका कार्य इससे बहुत ऊपर है। आपकी सांसों का कनेक्शन, आपके शरीर के साथ साथ,आपके भीतर चल रहे वो विचार, वो इमोशन्स, उन सबसे सीधा संबंध होता है। इसीलिए भगवान बुद्ध की विपश्यना मेडिटेशन में सांसो पर विशेष ध्यान दिया गया है। और क्या आपको पता है,की आप अपने सांसो के प्रयोग से ही, परम ज्ञान को उपलब्ध हो सकते है। आपके इमोशन्स, आपके विचार या आपके भीतर तल पर घट रही कोई भी घटना, जो सुष्म तल पर है।
उन सभी घटनाओं की ज़िम्मेदार आपकी सांस है। शायद आप नहीं जानते होंगे, अगर आप अपनी सांसों पर एक छोटा सा प्रयोग करते रहे। तब आप इस भौतिक जगत में चल रही घटनाओं के बारे में, पेड़, पौधे, पशु, पक्षी इस प्रकृति के बारे में,इतना ही नहीं इस ब्रह्मांड के बहुत से रहस्य जानने लगते हैं। हाँ, केवल इस सांसों के प्रयोग से,आप अपने आपको पूरा का पूरा बदल सकते हैं।एक नया इंसान बना सकते हैं। मतलब आपका होना, जो भी है, वो वैसा नहीं होगा। वो, वो होगा जो असल में आपको होना चाहिए।
देखिए आप इसे ऐसे समझ सकते हैं,आपके हर एक इमोशन्स और आपके भौतिक शरीर के बाहरी और भीतरी बदलाव जो भी कुछ होते हैं, वो आपकी सांसों की लय बद्धता की वजह से होते हैं, जब आपको बहुत ज्यादा गुस्सा आता है, तब आप देखेंगे आपकी सांसे बहुत ज्यादा तेज हो जाती है, अगर ठीक उसी समय, आप केवल अपनी सांसों को कंट्रोल कर पाए, उसे थोड़ा धीमा कर सकें, तो आप देखेंगे आपका गुस्सा एकदम से खत्म हो जाएगा, साधारणता एक मनुष्य 1 मिनट में 15 से 16 बार सांस लेता है,
और उतनी ही बार छोडता है। तो वह इस कैलकुलेशन से बिल्कुल एक काम आसान है, हमारी तुम्हारी तरह। और सतगुरु कहते हैं,कि अगर आपके शरीर से एक प्रयोग करके, बिल्कुल सही ढंग से,आपकी सांसों को 15 से 16 बार जो आप लेते हैं 1 मिनट में,अगर उसे 11 बार से नीचे लेकर आया जाए। तब आपके भौतिक तल पर एक समझ का दायरा बढ जाता है। मतलब आप इससे अपने आसपास के कई प्रकार के कंपन महसूस करना शुरू कर देते हैं,यानी शब्दों की ध्वनि से जो आप सुन पाते हैं, समझ पाते हैं,
आप उससे भी बारीक चीजो को पकडने लगेंगे, उनसे हल्की ध्वनिया महसूस करने लगेंगे। जैसे जानवर जो ध्वनि निकालते हैं, आप उन्हें महसूस कर पाएंगे। उन ध्वनियों में मौजूद, वो फीलिंग्स वो वाइब्रेशन महसूस कर पाएंगे। सीधे शब्दों में कहूं तो आप एक जानवर को गौर से देख कर, उसे महसूस कर के बता सकते हैं, कि ये किस प्रकार के इमोशन्स में है। और जब आपकी सांसे,नौ से कम हो जाती हैं,तब आप पेड पौधों के इस प्रकृति के मेकैनिज्म को समझने लगते हैं,क्योंकि जीवन तो पेड पौधों में भी हैं,और कहते हैं कि पेड पौधे भी बात करते हैं।
ये हमारी फीलिंग्स और इमोशन्स को समझते हैं। यह म्यूजिक और संगीत को भी समझते हैं,और इन सब का इन पेड़ पौधों पर,असर भी पड़ता है। और अगर आपकी सांस 6 से भी कम हो जाती है तो आप बेजान चीजों को समझने लगते हैं, लेकिन असल में वो बेजान चीजें आपको बेजान नजर आती है, लेकिन ऊर्जा उसमें भी है। और आप उस ऊर्जा को महसूस कर सकते हैं, और जब आप बेजान चीजों के कंपन को महसूस करने लगेंगे, उसे जानने लगेंगे, तब आपके लिए ब्रह्मांड के को सभी रहस्य धीरे धीरे स्पष्ट होने लगेंगे।
आप उनके बारे में भी जानने लगेंगे,और विपसना ध्यान विधि,आपको इस ऊंचे स्तर पर ले जाने की एक विधि है। सांसों के इस प्रयोग को धीरे धीरे अगर आप करते रहेंगे,तो एक दिन ये साध जाएगा। लेकिन ये ऐसा नहीं है,जैसे जान बूझकर आप अपनी सांसों की काउंटिंग कम कर दें। 1 मिनट में पांच बार 6 बार इसे करने लगे। ये तो फोर्सफुली होगा। इसे प्रकृति होना चाहिए। ऐसे तो बहुत से लोग हैं जो अपनी सांसों को 1 मिनट तक के लिए रोक सकते हैं, और कुछ इससे ज्यादा भी, लेकिन इससे आपका बोध नहीं बढेगा
आपने देखा होगा जब आप ध्यान करते हैं, तब आपके सांसो की गति धीरे धीरे कम होने लगती है,क्योंकि अब आपके शरीर को इतनी ऊर्जा की जरूरत नहीं है, क्योंकि अब आपके शरीर को कुछ करना ही नहीं पड़ रहा है। वो तो शांत बैठा हुआ है, कोई एक्टिविटी नहीं, बिल्कुल शांत, और जब वो शांत बैठा है,तो उसे ऊर्जा की आवश्यकता नहीं है। और इस शरीर को जितनी ऊर्जा चाहिए, वह ऊर्जा आपकी सांसों के ईंधन से बनती है। लेकिन ध्यान की अवस्था में आपका शरीर बिलकुल शांत है,तब धीरे धीरे आपकी सांसे कम होने लगती है,
शांत होने लगती है। तो पहला कॉम्बिनेशन यहाँ बन जाता है। आपका शरीर शांत तो आपकी सांसे भी शांत हो जाएंगी, और जब आपकी सांसों की लय बद्धता कम होने लगती है,तो आपके विचारों का कनेक्शन भी आपकी सांसों से है। वो भी कम होने लगते हैं,और जब आपके विचार शरीर सब शांत हो जाता है, ठहर जाता है, तब उस समय आपके आसपास जो बह रहा है,वो सब आपके भीतर प्रवेश पाने लगता है। या यू कहे आपको उसका बोध होने लगता है।क्योंकि ज्ञान कोई पाने जैसी चीज़ नहीं है।
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