संत कबीर दास के दोहे उनकी गहरी आध्यात्मिकता और सामाजिक संदेशों के कारण भारतीय साहित्य में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। यहाँ कुछ प्रसिद्ध कबीर के दोहे और उनके अर्थ दिए गए हैं:
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि जब मैं इस दुनिया में बुराई खोजने निकला, तो मुझे कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपने मन को देखा, तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है। यह दोहा आत्मनिरीक्षण और स्वयं के दोषों को पहचानने की सीख देता है।
कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि वे दुनिया के बाजार में खड़े होकर सबके लिए भलाई की प्रार्थना करते हैं। वे किसी से दोस्ती या दुश्मनी नहीं रखते, बल्कि सभी के लिए एक समान भावना रखते हैं।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
औरों की तो पंडिताई, फेर की फेरिन होय।।
अर्थ: कबीर के अनुसार, जो व्यक्ति प्रेम के ढाई अक्षरों का अर्थ समझ लेता है, वह सच्चे मायने में ज्ञानी हो जाता है। बाकी ज्ञान तो केवल तर्क-वितर्क में उलझा रहता है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
अर्थ: इस दोहे में कबीर कहते हैं कि दुनिया के लोग धार्मिक पुस्तकों को पढ़-पढ़कर मर जाते हैं, लेकिन उनसे सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते। सच्चा ज्ञानी वही है जो प्रेम के ढाई अक्षरों का मतलब समझता है।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि संत वही है जो सूप की तरह हो, जो सार्थक बातों को ग्रहण कर ले और निरर्थक बातों को उड़ा दे। यह दोहा विवेकपूर्ण सोच और समझदारी की शिक्षा देता है।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि माला घुमाते हुए युग बीत गए, लेकिन मन का फेर नहीं बदला। इसलिए वे सलाह देते हैं कि हाथ की माला को छोड़कर, मन के विचारों को बदलो।
जो घर जारे आपना, चले हमारे साथ।
जो घर फूँके आपना, चले हमारे साथ।।
अर्थ: कबीर यहाँ कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने अहंकार और सांसारिक इच्छाओं को जला देता है, वही सच्चे मार्ग पर चल सकता है। इस दोहे में त्याग और सादगी का संदेश है।
कबीरा तेरी झोंपड़ी, गलकटियन के पास।
जो करेगा सो भरेगा, तू क्यों भयो उदास।।
अर्थ: कबीर अपनी झोंपड़ी उन लोगों के बीच बना लेते हैं जो गलती करते हैं, और कहते हैं कि जो व्यक्ति जैसा करेगा, वैसा भरेगा, इसलिए उदास होने की जरूरत नहीं।
तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि तन को योगी बनाना आसान है, लेकिन मन को योगी बनाना बहुत कठिन है। जब मन योगी बन जाता है, तब सभी सिद्धियाँ स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाती हैं।
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात।
देखत ही छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि मनुष्य की जाति पानी के बुलबुले की तरह है। जैसे वह दिखते ही गायब हो जाता है, वैसे ही मनुष्य का जीवन भी क्षणभंगुर है
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