सखी! प्रणय ही परम वेद !
प्रियपरम से परिणय प्रीति
करे उन्मोचित मर्म्म भेद!
प्रिय-प्रेम बिन प्राण नहीं है
जीवन का सम्मान नहीं है,
प्रेष्ठस्वार्थ ही मंगल लाये
दूरित करे विषाद-क्लेद।।
प्राणेश्वर जो योग उन्हीं से
जीवन का संयोग उन्हीं से,
प्रेमास्पद ही मूल प्रेरणा
जीवन-प्राण सम्वेग ।।
भक्ति-प्रेम का डोर वही है
मुक्त-प्राण विभोर वही है,
सार्थक सेवा करे प्रिय की
नहीं कर्म्म में कोई छेद।।
Lyrics - Dhritiman Singh
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