सनाढ्य का शाब्दिक अर्थ दो शब्दों से मिलकर बना
है,सन्+आढय जिसका अर्थ सन् अर्थात तप और
आढ्य अर्थात ब्रम्हा। ब्रम्हा के तप से उत्पन्न ब्राम्हण
और तपस्या में रत रहने बाले अर्थात तपस्वी।सनाढ्य
या गौड़ सनाढ्य ब्राहमण मुख्यत पच्छिमी उत्तरप्रदेश,
दिल्ली,राजस्थान, मध्यप्रदेश के क्षेत्र में रहते हैं।
सनाढ्य ब्राह्मणों में एक ख़ास बात ये हैं की यह सभी
अपने मूल ग्रामो से जाने जाते हैं उन्ही ग्रामो से
विख्यात हैं यह अपने ग्रामो के नामो को ही(जहाँ से
इनका निकास हुआ उस ग्राम/गाओं का नाम ही)
अपना गौत्र बताते हैं,कहने का भाव ये हैं की ये
अपने ग्रामो/गाँव का नाम ही अपने उपनाम या
अपने आस्पद के रूप में बताते हैं
सनाढ्य ब्राह्मणों में बड़ी विचित्रता यह हैं कि
कहीं इनका कन्या संबंध गौड़ ब्राह्मणों में होता हैं
और कहीं कहीं सारस्वत ब्राह्मणों में भी होता देखा
व सुना गया हैं मूलत: सनाढ्यों के गौत्र जगत
प्रसिद्ध हमारे ऋषियों के नामों से ही प्रसिद्ध हैं वैसे
तों सभी मूलत:ब्रह्मऋषियों,देवऋषियों व राजऋषियों
की ही संताने हैं राजऋषि- महाराज मनु,विश्वामित्र
. ब्रह्मऋषि-वशिष्ठ,भरद्वाज,अगस्त्य,अंगिरा. देवऋषि-
नारद आदि आदि और अगर दूसरे परिप्रेक्ष्य से देखा
जाये तों सभी कश्यप ऋषि की ही संताने हैं पुराणों
के कथनानुसार से देवी भागवत पुराण अथवा
भागवतपुराण आदि
सनाढ्य ब्राह्मणों में एक बात यह भी हैं की इनमे
विवाह कई बार एक ही आस्पद या एक ही उपनाम
के परिवारों में सम्बन्ध होते देखें हैं उदाहरण के
लिए की जैसे एक परिवार उपाध्याय आस्पद/
उपनाम का हैं पर उसका गौत्र भारद्वाज हैं और
जिससे सम्बन्ध होना हैं उस परिवार का भी
उपाध्याय आस्पद/उपनाम ही हैं पर उसका गौत्र
अगस्त्य हैं इन दोनों एक जैसे उपनामों में भिन्नता
सिर्फ गौत्र की हैं आप सोच रहे होंगे की यह कैसे
तों मै आपको बता देना चाहता हूँ की यह जो
आप सोच रहे हैं ऐसा नहीं हैं उपाध्याय गौत्र नहीं
होता उपाध्याय एक पदवी होती हैं पर कुछ लोग
उन्हें गौत्र के रूप में परिभाषित करते हैं ये कोई
बड़ी बात नहीं हैं अब इन बातों को और किसी
उपनाम/आस्पद के परिवारों के गोत्रों से घटा
लीजिये दुबे,दीक्षित,चौबे, तिवारी,शुक्ला,पाठक,
पण्डित(ये भी अब एक उपनाम/आस्पद हो चला)
,पांडे,त्रिपाठी आदि आदि
वर्तमान में सनाढ्य ब्राह्मणों के बहुत सारे उपनाम
हैं या कह लीजिये आस्पद हैं उदाहरण के लिए
नीचे निम्नलिखित पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध
आस्पदों/उपनामों की सूची पढ़िए:
शर्मा आस्पद तों बहुत मशहूर हैं ये सिर्फ ब्राह्मणों
के लिए ही परिभाषित किया जाता मनुस्मृति के
अनुसार
1. उपाध्याय 2. दुबे 3. शुक्ला 4. दीक्षित 5.
पाठक 6. मिश्रा 7. जोशी 8. त्रिवेदी 9. त्रिपाठी
10.द्विवेदी 11.चतुर्वेदी 12.पांडेय 13.अग्निहोत्री
14.त्यागी ये सभी आस्पद या उपनाम उत्तरभारत
में सर्वविदित अथवा सर्वज्ञात हैं सभी जन को
लेकिन! इसके इलावा सनाढ्य ब्राह्मणों में कई
ऐसे भी आस्पद या उपनाम प्रचलित हैं जो एक ही
आस्पद उपनाम के होते हुए भी विभिन्न प्रकार के
ऋषि गोत्रों का दावा करते हैं उदाहरण के लिए
निम्नलिखित सूची देखें: 1.जगरिया/झगरिया 2.
माहेरे/माहेरिया 3.लवानिया/लमानिया 4.पचोरी/
पचोरिया 5.भिरथरे 6.वैदेले-वैदले 7.रावत 8.
पंचगैया 9.जगनवंशी 10.त्रिगुनाई 11.वैशंधरे 12.
वेदसार 13.करोलिया 14.काँकोलिया 15.चौरासिया
16.पिपरोलिया 17.तीखे 18.तिहोंनगुरिया/तेहनगुरिया
19.मसेनिया 20.भमरेले अन्य और भी 300 से ज्यादा
आस्पद/उपनाम हैं सनाढ्यों के जो अपने ग्रामो के नाम
से विख्यात हैं और अपने अपने क्षेत्र के ग्रामो तक ही
सीमित रह गये हैं, ‘सनाढ्य’ में ‘सन्’ तप वाचक है।
अर्थात तप द्वारा जिनका पाप दूर हो गया है वे सनाढ्य
ब्राह्मण कहे जाते हैं। इनका उद्भव आदिगौड़ ब्राह्मणों से
ही हुआ है। सनाढ्य ब्राह्मण कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की चौथी
शाखा है। अतः इनका वर्णन भी पंचगौड़ ब्राह्मणों के
अंतर्गत किया जाता है।
त्रेता युग में श्री राम ने अपने पिता के वचन की पालना
हेतु 14 वर्षों के लिए वनवास किया। इसके पश्चात्
संग्राम में रावण का वध कर सीता और लक्ष्मण सहित
अयोध्या लौटे। राज्याभिषेक के बाद ब्रह्महत्या के दोष
के निवारण के लिए यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ
में आदि गौड़ ब्राह्मणों को निमंत्रित किया गया। आदि
गौड़ ब्राह्मणों ने विधिविधानपूर्वक यज्ञ करवाया। यज्ञ
की समाप्ति पर अवभृथ स्नान करके प्रथम वरण किए
हुए आदि गौड़ ब्राह्मणों को दान देने को तत्पर हुए।
किंतु ब्रह्महत्या के दोषी राजा रामचंद्र से उन्होंने
दक्षिणा नहीं ली और वे चले गए। बचे हुए 750
कान्यकुब्ज आदि ब्राह्मणों ने दक्षिणा स्वरूप राम
द्वारा प्रदत्त 750 ग्राम आदि दान सहर्ष स्वीकार कर
लिए। उन ग्रामों के नाम से आज भी अवंटक
(शासन) या कुरीगांव प्रख्यात हैं।
भगवान राम द्वारा किए गए इस यज्ञ में 1001
ब्राह्मण याज्ञिक थे जिन्होंने यज्ञ में दान स्वीकार
किया। इनमें 251 कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे जिन्होंने
गाय और साढ़े दस गांव दान में प्राप्त किए। 750
ग्राम अन्य विद्वान ब्राह्मणों को दान स्वरूप दिए
गए जो सभी प्रकार के मिले-जुले ब्राह्मण थे। इस
प्रकार का दान देकर भगवान राम ने उन 750
ब्राह्मणों को सनाढ्य ब्राह्मण नाम की संज्ञा से
अलंकृत किया। यह 750 ग्राम गंगा-यमुना के
विस्तार क्षेत्र में है। साढ़े दस गाँव 251
कान्यकुब्ज ब्राह्मणों को दिये जो अयोध्या के
दक्षिण भाग में है और उन्हें कान्यकुब्ज संज्ञा से
अभिनीत किया। इस प्रकार सनाढ्य ब्राह्मण
वंश का कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से ही संबंध है।
सनाढ्य ब्राह्मणों का क्षेत्र गंगा यमुना के मध्य
क्षेत्र के 8 जिलों -1.मथुरा 2.एटा 3.अलीगढ़
4.बुलंदशहर 5.मेरठ 6.बदायूं 7.मैनपुरी 8
.आगरा आदि में फैला हुआ है।
Негізгі бет सनाढ्य ब्राह्मणों का पूर्ण परिचय ||Complete Information about Sanadya Brahmans.
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