Sanskriti sabki ek chirantan by Swaminand sinha
संस्कृति सबकी एक चिरंतन खून रगों में हिंदू है
विराट सागर समाज अपना हम सब इसके बिंदु हैं।
रामकृष्ण गौतम की धरती महावीर का ज्ञान यहां,
वाणी खंडन मंडन करती शंकर चारों धाम यहां।
जितने दर्शन राहे उतनी चिंतन का चैतन्य भरा
पंथ खालसा गुरु पुत्रों की बलिदानी यह पुण्य धरा।
अक्षय वट अगणित शाखाएं जड़ में जीवन हिंदू है।
कोटि ह्रदय है भाव एक है इसी भूमि पर जन्म लिए
मातृभूमि यह कर्मभूमि यह पूण्य भूमि हित मरे जिए
हारे जीते संघर्षों में साथ लड़े बलिदान हुए
कालचक्र की मजबूरी में रिश्ते नाते बिखर गए
एक बड़ा परिवार हमारा पुरखे सबके हिन्दू हैं।
सबकी रक्षा धर्म करेगा इसकी रक्षा आज करें
वर्ण भेद मतभेद मिटाकर नवरचना निर्माण करें।
धर्म हमारा जग में अभिनव अक्षय है अविनाशी है
इसी कड़ी से जुड़े हुए युग युग से भारत वासी हैं
थाह अथाह जहां की महिमा गहरा जैसे सिंधु है।
हरिजन गिरिजन वासी वन के नगर ग्राम सब साध चले
ऊंच नीच का भेद मिटाकर समता के सद्भाव भरे
ऊपर दिखते भेद भले हो जैसे वन में फूल खिले
रंग बिरंगी मुस्कानों से जीवन रस पर एक मिले
संजीवनी रस अमृत पीकर मृत्युंजय हम हिंदू हैं।
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