जैनी जुलम गुलम यौह गैला, जैसे हो तेली का बैला।
घर ही कोष पचास पियारा, भूलि गये साहिब दरबारा।।
जैनी जनम जुवा ज्यौं हारौ, पांचों इन्द्री कसि कसि मारौ।
मन मूर्ति का मर्म न जान्या, तातैं जन्म जन्म हौंहि ष्वाना।।
जैनी जल थल पुरुष बिराजे, जाकी सकल घड़ावलि बाजे।
घट घट में निर्गुण निरवानी, जैनी जाकी सार न जानी।।
जैनी जीव दया बौह बाना, कर्ता कर्म कहैं अज्ञाना।
जा तत् सेती येता होई, परमानन्द लख्या नहीं कोई।।
मुख मूंदे हैं मुरद फिरोसी, जिन से साहिब हैं सौ कोसी।
ररंकार रंगी नहीं रसना, जिनकी कैसे मिटि है तृष्णा ।।
काया माया सकल है मिथ्या, याह तो सही ज्ञान की संथ्या।
पारब्रह्म जान्या नहीं नेरा, बिना बंदगी सकल बखेरा।।
जती सेवड़े जैनी जानो, सकल ढूंढिया रूप बखानो।
पारब्रह्म की नांहीं आषा, ये चौबीसों गए निराषा।।
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Негізгі бет Sant GaribDas Ji's Vani on Jainism | Explanation by Satguru Rampal Ji
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