Shree Shyam Mandir Bir Babran Dham Hisar - श्री श्याम मंदिर बीड बबरान हिसार || Sunita Goyal || #shyammandir #khatushyam #sunitagoyal
बीड़ बबरान धाम का इतिहास व कुछ महत्वपूर्ण जानकारी -
भीमसेन अपनी पत्नी पति के साथ नाग लोक से नासिक (महाराष्ट्र) में एक शिवालय में आकर रुके और कुछ समय पश्चात भीम सहन भीमसेन अहिलावती से विदा लेकर अपने परिवार के पास लौट आए । उस समय अहल वती गर्भवती भी समय आने पर अहलवती ने पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम बर्बरीक रखा दोनों मां बेटा वहां रहकर शंकर जी की आराधना करते और ब्राह्मणों को उनकी तपस्या में रक्षा करते थे 1 दिन नारद जी का वहां आगमन हुआ और उन्होंने सूचना दी कि कुछ दिन पश्चात कौरवों और उसके परिवार के बीच महाभारत का युद्ध होने वाला है अतः बर्बरीक को अपने परिवार की सहायता करनी चाहिए। तत्पश्चात बर्बरीक ने युद्ध में जाने की आज्ञा मांगी और अहलावत ने भारी मन से आज्ञा दी और सख्त निर्देश दिया कि वहां पहुंचते ही कृष्ण जी से भेंट करना और जैसा वह कहें वैसा ही करना बर्बरीक वहां से कुरुक्षेत्र के लिए चल पड़े और रास्ते में विश्राम करने के लिए रुके जहां पर कुआं और पीपल का पेड़ था वहां पर श्री कृष्ण ब्राह्मण के वेश में बर्बरीक से मिलने के लिए और बर्बरीक से पूछने पर बताया कि वह कुरुक्षेत्र में होने वाले महाभारत के युद्ध में अपने परिवार की सहायता करने के लिए जा रहा है ब्राह्मण के पूछने पर बर्बरीक ने बताया कि उसका धनुष और बाण दिव्य है क्योंकि धनुष अग्निदेव ने प्रदान किया था और बाण शंकर जी ने प्रदान किए थे बाणो की विशेषता थी कि एक ही बाण से पूरी सेना का संहार करके वह बाण तरकस में वापस आ जाता था ब्राह्मण देव ने अविश्वास जताते हुए कहा अगर शक्ति है तो पीपल के सारे पत्तों को छेद करो। तुरंत ही बर्बरीक ने बाण का संधान करके छोड़ा और पलक झपकते ही बाण ने सारे पत्ते बिंद दिए और वापस आकर तरकस में पहुंच गया तभी ब्राह्मण देवता चतुर्भुज नारायण स्वरूप में प्रकट हो गए और बर्बरीक को आशीर्वाद देकर चले गए और बर्बरीक भी कुरुक्षेत्र के लिए रवाना हो गए जिस स्थान पर यह मिलन हुआ वह आज बीड़ बबरान के नाम से जाना जाता है।
तत्पश्चात युद्ध भूमि में जाकर श्री कृष्ण के मांगने पर अपना शीश काटकर श्री कृष्ण के हाथों में रख दिया तब श्री कृष्ण ने इन्हें शाम नाम दिया और अपनी सारी कलाएं भी दी काफी समय बीत जाने पर खाटू नगर में श्याम कुंड से बाबा का शीश निकला और भक्तों ने वहां भव्य मंदिर बना कर बाबा को वहां विराजमान कर दिया।
बीड़ बबरान में आज भी वह कुआं है और पुजारी जी ने बताया की कुआं तकरीबन 300/400 फुट गहरा है और किसी को नुकसान न हो इसी कारण इस पर प्रतिमाएं स्थापित करवा रखी है। इस कुएं पर एक शिलालेख लगा हुआ है जिस पर बताया जाता है की पांडुलिपि में कुछ लिखा हुआ है।
और पीपल का पेड़ है जिसका हर पत्ता आज भी बिंदा हुआ होता है कुछ समय पहले श्याम बाबा की प्रेरणा से वहां के लिए स्थानीय निवासियों ने खुदाई की और काफी मेहनत के पश्चात वहां पर बाबा का विशाल स्वरूप में शीश निकला तत्पश्चात वहा एक छोटा सा मंदिर का निर्माण किया गया और शीश को वहां विराजमान करवाया गया।
यहा पर तकरीबन 50 साल से परम पू पंडित राम गोपाल शर्मा जी जिन्होंने 11.3.1973 को यहां से बाबा का शीश प्रकट किया उनका ही परिवार बाबा की सेवा बड़ी श्रद्धा भाव से कर रहा है। उनके सुपुत्र पुजारी परिवार विनोद शर्मा जी वा उनके सुपुत्र विनय शर्मा जी ने हमे बताया कि बाबा का यहां पर बहुत पर्चा है। कुछ चमत्कार भी सांझा किए जो वीडियो में बताए गए है । इसके अलावा पुजारी जी ने बताया कि बाबा श्याम की यहां जो प्रतिमा है वो स्वयंभू है और वो केवल प्रतिमा नहीं है स्वयं बाबा ही है। क्योंकि कभी पत्थर को पसीना नहीं आता लेकिन यहां बाबा को जून जुलाई के महीने में जब बहुत ज्यादा गर्मी होती है तब माथे पर पसीना देखा जाता है हल्की हल्की पसीने की बूंदे देखने को मिलती है। यही नही बाबा को लगाया जाने वाला इत्र भी खास है और वही इत्र शीश पर लगाया जाता है और कभी वो इत्र ना लगाए तो बाबा का चेहरा खुशक हो जाता है जो की अपने आप में एक बहुत बड़ा चमत्कार है । यही नहीं पुजारी जी ने एक शिला दिखाई और उसके बारे में बताया कि ये शिला बाबा के आदेश से यहां से कुछ दूरी पर घने जंगल में से लाई गई है और इस पर बाबा के घोड़े के पैर के निशान है और रात्रि में कई बार इस शिला में से घोड़े के पैरों की आवाज भी आती है। सुनकर रोंगटे खड़े हो रहे थे जैसे मानो स्वयं बाबा यही विराजमान है। उसके बाद पुजारी जी ने एक एक करके सहेज के रखे हुए वो पीपल के पत्ते दिखाए जो तकरीबन 40/30/25/15 साल पुराने थे । उनको देख कर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये पत्ते इतने पुराने हो सकते है मानो किसी ने रबड़ के पत्ते रख दिए हो जिसकी चमक अभी तक बरकरार है। इनमे सबमें अलग तरह के छेद देखने को मिल रहे थे। यही नहीं पुजारी जी ने कहा कि यहां जो पत्ता नीचे गिरा मिले आप घर ले जा कर उसको किसी पुस्तक में सहेज कर रख सकते है वो सालों साल ऐसा ही रहेगा। भुरेगा नहीं । अदभुत । अविश्वसनीय। कुआ ढक दिए जाने के कारण हम न तो उसको देख पाए न उसकी वीडियो आप लोगो के लिए बना पाए। लेकिन वो कुआं आज भी मौजूद है इसी धाम में उस जगह जहां से शीश प्रकट हुआ वहां पर धुना बना रखा है और सामने ही उन परम भक्त श्रद्धेय की समाधि स्थल है जिन्होंने यहां तपस्या की और उन्ही का परिवार आज भी लगातार सेवा भाव से बाबा की सेवा में निरंतर लगा हुआ है।
ऐसी तपोस्थली जहां पर ऐसे चमत्कार आए दिन होते है की बाबा ना जाने कितने मुर्दो में जान डाल देते है। कितने भक्तो के काम बनते है इस दरबार की धोक लगाने से। आज पूरे भारतवर्ष से भक्त लोग यहां पेड़ एवं बाबा के दर्शन करने आते हैं अभी वहां स्थानीय निवासियों ने श्याम कुंड की नींव भी रख दी है
मेरा आपसे निवेदन है की बहुत सच्चा धाम है एक बार जरूर जाए और धाम के दर्शन करें।
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