सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा॥
कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला॥1॥
भावार्थ-
शिवजी के गण शिवजी का श्रृंगार करने लगे। जटाओं का मुकुट बनाकर उस पर साँपों का मौर सजाया गया। शिव जी ने साँपों के ही कुंडल और कंकण पहने, शरीर पर विभूति रमायी और वस्त्र की जगह बाघम्बर लपेट लिया॥
सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा
Rajan Ji Maharaj Bhajan
Shivahi Shambhugan Karahi
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Негізгі бет सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा 🙏🙏 Shivahi Shambhugan Karahi Shringara 👌
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