एक शास्त्रार्थ सभा में जब तंत्राचार्य अभिनव शास्त्री, जगद्गुरु शंकराचार्य के तर्कों से पराजित हो गए तो उन ने अपनी पराजय को तंत्र शास्त्र की पराजय के रूप में लिया और अपने अपमान का बदला लेने के लिए पहाड़ की एक गुफा में योगी शंकर का पुतला बनाकर प्राणघातक मारण तंत्र प्रयोग कर दिया, योगी शंकर अचानक ही भगंदर रोग के असह दर्द और अपार वेदना से व्यथित हो गए तब उन्होंने इस तंत्र, रोग, वेदना और कष्ट से निजात पाने के लिए जगत जननी मां महा त्रिपुर सुंदरी के दरबार में श्लोक के माध्यम से निवेदन किया, 100 वां श्लोक पूरा होते ही जगत जननी मां ने अपने वर्द पुत्र को इस अपार वेदना, दर्द, रोग और तंत्र से मुक्त कर दिया ।
कुल 103 श्लोकों का संकलन ही सौंदर्य लहरी के नाम से जाना जाता है, जिसकी रचना जगतगुरू आदि शंकराचार्य के द्वारा की गई, सौंदर्य लहरी का पाठ और श्रवण समस्त प्राणियों के लिए दर्द, रोग, शोक, वेदना, तंत्र, कष्ट से मुक्ति प्रदान करने वाला है ।।
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