Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj's Discourse in Hindi
स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज जी का प्रवचन।
ज्ञानपूर्वक असंग होकर निर्ममता, निर्विकारता, शान्ति, मुक्ति पा सकते हैं और आस्था, श्रद्धा, विश्वासपूर्वक शरणागत होकर भक्ति पा सकते हैं। जो चीज इस जीवन में मिल सकती है, उसको प्राप्त करने पर फिर आगे के जीवन का प्रश्न ही नहीं रहता। यदि इस मानव योनि का ठीक-ठीक लाभ नहीं उठाया, तो भोग योनि मिलेगी। भोग योनि की तो संख्या बहुत है, इसलिए इंसानी जिन्दगी में यह आजादी है हर भाई को, हर बहन को कि वह सत्संगी होकर मुक्ति, शान्ति, भक्ति, सेवा, त्याग और प्रेम का आनन्द प्राप्त कर सकता है। इसमें वह पराधीन नहीं है, असमर्थ नहीं है। क्यों नहीं है? इसी जीवन के लिए तो यह मानव-जीवन मिला है। जिसने यह मानव-जीवन दिया है, उसका यह संकल्प है कि हर भाई, हर बहन सत्संगी होकर साधननिष्ठ हो जाए अर्थात् शान्ति, मुक्ति, भक्ति पा जाए। यह मानव के बनाने वाले का संकल्प है।
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Негізгі бет सुखियोंमें उदारता और दु:खियोंमें त्याग नहीं रहता। 38(b) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
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