'सुनहु साधक प्यारे'
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा
स्वरचित काव्य रचना की व्याख्या।
दिनांक 15 नवम्बर, 2002.
श्री महाराज जी के शब्दों में,
"जो मेरी शरण में आयेगा, वही माया से उत्तीर्ण होगा। इसलिये जीव बिचारा बड़ी कोशिश करता है। शास्रों वेदों के ज्ञाताओं से, महात्माओं से सुनता है, ये माया ने तंग कर रखा है, अपने स्वरूप को... सब याद आ गया, भूल गया था। ये भूला हुआ याद आया, लेकिन काम नहीं आया। क्योंकि वो माया को जीत नहीं सकता। बिचारा बहुत ताक़त लगाता है। अब ब्रह्म की ताकत के आगे जीव की ताकत क्या करेगी? कितना बड़ा अंतर है! भगवान कहते हैं ताकत मत लगा, मेरी शरण में आ जा। सरेंडर कर दे, कम्पलीट सरेंडर। 'मां एकं शरणं व्रज।' वो हम करते नहीं, ताकत लगाते हैं।"
Негізгі бет Музыка ताकत मत लगा, मेरी शरण में आ जा
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