तंत्र-मन्त्र की चार महान रात्रियाँ
रात्रियों में चार मुख्य और महत्वपूर्ण रात्रियाँ हैं- महारात्रि, मोहरात्रि, दारुण रात्रि और काल रात्रि । शिवरात्रि को महारात्रि, कृष्ण जन्माष्टमी को मोहरात्रि, होलिका की रात्रि को दारुण रात्रि और दीपावली की रात्रि को काल रात्रि कहा गया है।
शिवरात्रि : महारात्रि के समय भूत, भविष्य और वर्तमान में
न कालखण्ड एक पल के लिए एक हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप यक्ष, गन्धर्व, किन्नर आदि लोकों से सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है भूलोक से।
कृष्ण जन्माष्टमी : मोहरात्रि के समय काल का अनन्त प्रवाह भी एक या दो पल के लिए ठहर जाता है, जिसके फलस्वरूप देवलोक से सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। भूलोक का।
होलिका दहन रात्रि : इसी प्रकार दारुण रात्रि के समय महाकाल का अनन्त प्रवाह कुछ पल के लिए ठहर जाता है जिसका परिणाम यह होता है कि महाकाल के अन्तर्गत जितने भी लोक-लोकान्तर हैं, उन सबका सम्बन्ध स्थापित हो जाता है सीधा भूलोक से। भूलोक का एक भाग सुक्ष्म लोक है जिसमें विदेही आत्माएं निवास करती हैं। उस अवस्था में उन आत्माओं का संपर्क स्थापित हो जाता है। लोक-लोकान्तर से ।
दीपावली की रात्रि : चौथी रात्रि है - कालरात्रि । यह रात्रि अन्य रात्रियों से पृथक अपना महत्व रखती है। इसकी अपनी आध्यात्मिक विशेषता तो है ही, इसके अतिरिक्त अलौकिक विशेषता भी है। इसलिए महाकाल के ऊपर जो कालातीत अवस्था है, वहां परम शून्य है जिसको योग की भाषा में 'परमाकाश' कहते हैं। आकाश सात प्रकार के होते हैं जिनमें 'परमाकाश' अन्तिम आकाश और उस परमाकाश में महाकाल की अन्तहीन शक्तियां क्रियाशील हैं। कहने की आवश्यकता नहीं, वे अन्तहीन शक्तियां ही विभिन्न रूपों में, अंक, वर्ण और स्वर के रूप में अभिव्यक्त होती हैं जिनका उचित संयोजन कर यंत्र और मन्त्र का रूप दिया जाता है।
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