हमारा स्वरूप चिन्मय सत्तामात्र है, और उसमें
अहम् नहीं है-यह बात यदि समझ में आ जाय तो
इसी क्षण जीवनमुक्ति है ! इसमें समय लगने की
बात नहीं है। समय तो उसमें लगता है, जो अभी
नहीं और जिसका निर्माण करना है। जो अभी है,
उसका निर्माण नहीं करना है, प्रत्युक्त उसकी तरफ
दृष्टि डालनी है, उसको स्वीकार करना है ।
ॐ शान्ति विश्वम||
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