रश्मिरथी के दो सर्ग आपने सुने हैं अगर नहीं, तो नीचे दिए गए लिंक से जरूर सुनिए।
• रश्मिरथी ~ रामधारी सिं...
अभी तक हमने देखा है कि कर्ण ने रणभूमि में अर्जुन को ललकारा। दुर्योधन ने उसे अंगदेश का राजा बनाया और धनुविद्या सीखने ke liye vo परशुराम के आश्रम आया। और उसने परशुराम से झूठ बोला कि वह ब्राह्मण है। उस घटना के दौरान उसका झूठ खुल गया और परशुराम ने उसे श्राप दिया कि "मेरी सिखाई हुई ब्रह्मास्त्र-विद्या तू उसी पल भूल जाएगा जब तुझे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी।"
आज हम रश्मिरथी का तीसरा सर्ग सुनेंगे, जिसमें हम देखेंगे कि पांडवों का अज्ञातवास समाप्त हो चुका है। और उनके त्याग करने से कैसे एक वीर बनता है। और सीखेंगे कि हम भी थोड़ा सुख और बलिदान सब त्याग कर एक वीर और कामयाब बन सकते हैं। क्योंकि खूबियाँ सभी में होती हैं, बस उन्हें तातोलना और मेहनत करना होता है।
जैसे मेहंदी की पत्तियों को पिसने पर ही उसमें सुंदर लाल रंग चढ़ता है, उसी प्रकार बत्ती खुद जलकर उजाला फैलाती है। दिनकर जी के इस काव्य से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ, उम्मीद है आप भी इसे सुनकर अपने जीवन में बदलाव ला सकेंगे।
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Негізгі бет तृतीय सर्ग || Ep 1|| जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,वे ही शूरमा निकलते हैं... हो गया पूर्ण अज्ञात वास
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