दगड्याओं... उत्तराखंड में भवन शिल्पकला का इतिहास काफी पुराना अतुल्य और समृद्ध है. ये शिल्पकला गजब की भौगोलिक पारिस्थितिकी पर आधारित थी. आज के वीडियो में जानते हैं क्या है ये भवन निर्माण शैली? और देखते हैं कुछ लकड़ी, पत्थर और मिट्टी के बने खूबसूरत घरोंदे.
ये शानदार घर जौनसार बावर के हैं. जौनसार देहरादून के उत्तर-पश्चिम में यमुना और टोंस नदी के मध्य खूबसूरत क्षेत्र है. चकराता कालसी लाखामंडल बैराठगढ़ और हनोल यहाँ के प्रमुख स्थान हैं. जौनसार को महाभारत से भी जोड़कर देखा जाता है. जौनसारी जनजाति को पांडवो का वंशज माना जाता है. हनोल के महासू देवता का मंदिर उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. लेकिन ये मंदिर कत्यूर शैली से भिन्न है. यह हूण स्थापत्य कला का मंदिर है.
जौनसार के ऊपरी हिस्से में देवदार और चीड़ की बहुतायत है. निचले भाग में सागवान के जंगल हैं. इसलिए इन सुन्दर घरों में देवदार चीड़ और सागवान की इमारती लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है. यहां की देवदार की लकड़ी को अंग्रेज यमुना नदी के सहारे दिल्ली तक पहुंचाते थे.
ये घर पूरी तरह से भूकम्परोधी और पारिस्थतिकी के अनुकूल हैं. इन घरों की दीवारें 15 से 18 इंच चौड़ी बनाई जाती हैं. इन मोटी दीवारों के कारण बाहर के तापमान का असर कमरों पर नहीं पड़ता. ये घर लकड़ी और स्थानीय पत्थरों से बने होने के कारण गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म होते हैं. बर्फ़बारी में ये लकड़ी के घर कमरों को अंदर से गर्म रखते है.
अगर आप जौनसार घूमने आएं तो हनोल का महासू मंदिर और चकराता के पास टाइगर फॉल जरूर जाएं. हनोल देहरादून से 170 किलोमीटर और टाइगर फॉल 98 किलोमीटर है. आपको ये पहाड़ी शैली के घरों का चित्राहार कैसा लगा? कमेंट में जरूर लिखें. वीडियो को लाइक और शेयर जरूर करें. अगर आपने हमारा चैनल जुन्याली उत्तराखंड अभी तक सब्सक्राइब नहीं किया तो अब जरूर कर लें. धन्यवाद.
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Photographs: Indra Singh Negi
Flute Courtsey: Mukesh Chamoli
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